उत्तर प्रदेश के इस शहर में बने बांस के आभूषण की है दुनिया दीवानी, जानिए क्या है खास
UP News: बरेली में बने बांस-बेंत फर्नीचर के साथ ही गिफ्ट बास्केट, मिरर फ्रेम, लैंपशेड, कप-प्लेट की भी भारी मांग है। अब वन विभाग के बैंबू मिशन प्रशिक्षण केंद्र से ट्रेनिंग लेकर महिलाएं बांस के आभूषण भी बनाने लगी हैं। उन्हें उड़ीसा, उत्तराखंड, राजस्थान जैसे प्रदेशों में खूब पसंद किया जा रहा है।
जरी-जरदोजी के साथ ही बांस-बेंत उद्योग भी बरेली की बड़ी पहचान बन चुकी है। सरकारी आंकड़ों में बांस कारीगरों की संख्या लगभग 4 हजार है। बांस-बेंत से फर्नीचर बनाने का काम बरेली में पीढ़ियों से होता आ रहा है। पिछले पांच-सात वर्षों से कुछ एक्सपोर्टर्स ने पालतू कुत्तों और बिल्लियों के लिए बेड, फीडर और टब भी बनाने की शुरुआत की है। इसके साथ ही बांस-बेंत के गिफ्ट आइटम जैसे बास्केट, मिरर फ्रेम, लैंपशेड, कप, प्लेट, मग, जग, केतली, बोतल की भी बढ़ती मांग है।
इन्हें विदेश में भेजा जा रहा है। अब महिलाएं ने बांस के आभूषण बनाने में भी कदम बढ़ा दिया है। इसमें सीबीगंज स्थित वन विभाग के बैंबू मिशन प्रशिक्षण केंद्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। वन विभाग ने बैंबू मिशन के तहत बरेली में कॉमन फैसिलिटी सेंटर का शुभारंभ किया था। यहां बांस की संशोधन तथा सुधार की मशीनें लगाई गई हैं। किसानों को बांस उगाने का प्रशिक्षण दिया गया। महिलाओं को बांस के आभूषण, सज-सज्जा से जुड़ी तमाम वस्तुएं बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।
यह प्रशिक्षण महिलाओं के लिए रोजगार का साधन बन गया है। प्रशिक्षण के बाद महिलाएं बांस के आभूषण बनाने में काम करने लगीं हैं। उनमें से एक महिला महीने में 10 से 15 हजार रुपये कमा रही है।
सीबीगंज के आसपास के सात-आठ गांव की करीब 50 महिलाएं प्रशिक्षण केंद्र पर आभूषण और गृह सज्जा की वस्तुएं बना रही हैं। उन्हें वन विभाग के माध्यम से प्राइवेट कंपनियों को बेची जाती है। वन विभाग के डीएफओ समीर कुमार के अनुसार, "सीबीगंज में वन विभाग का सीएफसी चल रहा है, जिसमें महिलाएं बांस से आभूषण बनाती हैं। उन्हें अच्छे पैसे मिलते हैं और उनके उत्पादों की मार्केटिंग में भी सहयोग किया जाता है।
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