home page

Special : उत्तर प्रदेश के दो गुरुद्वारो का हैं काफी बड़ा इतिहास, पड़े थे श्रीगुरु तेग बहादुर के पैर

कानपुर शहर में दो गुरुद्वारे हैं जहां श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, सिख धर्म के नवें गुरु, के चरण पड़े थे। बाद में उनके स्थान पर गुरुद्वारों की स्थापना की गई। 1665 में पंजाब से असम जाते समय श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने सरसैया घाट पर स्नान किया था।
 | 
Special: Two Gurudwaras of Uttar Pradesh have a huge history, the feet of Shri Guru Teg Bahadur were here.

Saral Kisan : कानपुर शहर में दो गुरुद्वारे हैं जहां श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, सिख धर्म के नवें गुरु, के चरण पड़े थे। बाद में उनके स्थान पर गुरुद्वारों की स्थापना की गई। 1665 में पंजाब से असम जाते समय श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने सरसैया घाट पर स्नान किया था। फिर पास के एक बगीचे में रुके, जिसे बाद में गुरु का बगीचा कहा जाता था।

गुरुद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब जो चौक (धोबी मोहाल) में स्थित है और गुरुद्वारा संकट हरण दुख निवारण जो सरसैया घाट पर है। माना जाता है कि 358 साल पहले गुरु तेग बहादुर साहिब जी यहां आए थे, तब गंगा वर्तमान स्थान पर नहीं थी। श्रद्धालु पूरी श्रद्धा से दोनों गुरुद्वारों पर अरदास करने आते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि यहीं गुरु के चरण पड़े थे। वास्तव में, गुरु तेज बहादुर जी कानपुर पहुंचे थे और यहां प्रयागराज जाने से पहले विश्राम करने के लिए रुके थे। वर्तमान में दोनों गुरुद्वारों में शबद कीर्तन और अरदास होती है।

गुरु श्री संकट हरण और दुख निवारण

श्री संकट हरण दुख निवारण गुरुद्वारा सरसैया घाट के किनारे स्थित है। यह बताया जाता है कि बाबा श्रीचंद संप्रदाय के उदासी साधुओं ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को यहां रुकने की व्यवस्था की थी। 1828 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना यहीं हुई। पंजाब के व्यापारी और गुरु नानक पंथी लाला ठंठीमल ने यहां विधिवत गुरुद्वारा बनाया। लेकिन इसके लिए उन्हें अंग्रेजों से अनुमति चाहिए थी। अंग्रेजों ने पहले मना किया, लेकिन बाद में अनुमति दी।

यह गुरुद्वारा लंबे समय तक बंद रहा

गुरुद्वारा श्री संकट हरण दुःख निवारण भी एक समय बंद हो गया। आसपास कब्जा कर लिया गया। दशकों तक गुरुद्वारा अस्तित्व में नहीं रहा। 2002–2003 में इसे खोलने की कोशिश की गई। सरदार इंद्रजीत सिंह ने इसके लिए बहुत कुछ किया। कुछ समय तक स्थानीय लोगों का भी विरोध झेलना पड़ा। पर वह हिम्मत नहीं हारी और फिर से यहां गुरबाणी पढ़ने लगा। इसका पुनर्निर्माण किया गया था जहां से गंगा नदी को देखा जा सकता था। यहां हर वर्ष विशेष कार्यक्रम भी होने लगे।

सर्राफा चौक में श्री तेग बहादुर साहिब गुरुद्वारा

श्री तेग बहादुर गुरुद्वारा, सर्राफा चौक, धोबी मोहल्ले में है। कहा जाता है कि एक बार यहीं पास गंगा बहती थी। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने एक बगिया में विश्राम किया। 20वीं सदी में इस स्थान पर एक कमरे से गुरुद्वारे की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे यह गुरुद्वारा सुंदर घर बन गया है। शबद कीर्तन और अरदास यहां अक्सर होते हैं। यह शहर के सबसे सुंदर गुरुद्वारों में से एक है। जब यहां शरणार्थी नहीं आए थे, गुरुद्वारा पूरी तरह स्थापित हो चुका था। फाउंडिंग हिस्ट्री ऑफ कानपुर में कहा गया है कि सरसैया घाट पर गुरुजी ने अकेले स्नान किया था। यहीं एक बगीचे में रुके, जिसे उनके गुरु का बाग कहा जाता था। यह भी चर्चा हुई है कि श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी कानपुर तक कैसे पहुंचे और फिर कैसे चले गए। स्थितिजन्य साक्ष्यों के अनुसार, श्री गुरु तेग बहादुर जी ने पुराना जीटी रोड ही अपनाया। इस मार्ग पर कानपुर आना निश्चित है। गुरुद्वारा चौक नाम से वह बगीचे में ठहर गया।

श्री गुरु तेग बहादुर जी यहीं आए थे

श्री गुरु सिंह सभा के प्रधान सरदार हरविंदर सिंह लार्ड ने कहा कि सरसैया घाट के किनारे स्थित गुरुद्वारा पुराना है, लेकिन लंबे समय से बंद था। सरदार इंद्रजीत सिंह इसे देखता है। यह सरदार महेंद्रजीत सिंह बिंद्रा पूर्व में था। चौक गुरु ने कई इतिहासकारों से सहमत होने के कारण इसे ऐतिहासिक माना है। गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब चौक के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी मदन सिंह ने बताया कि जब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब कानपुर आए, तो गंगा कोतवाली के करीब बहती थी। सरसैया घाट उस समय संभवतः नहीं रही होगी। वह आज जहां गुरुद्वारा है, वहीं रुके थे। यही कारण है कि इस गुरुद्वारे को ऐतिहासिक माना जाता है।

ये पढ़ें : अब बंजर जमीन से भी किसान कमा लेगें लाखों रुपए, सरकार ने बनाया ये खास प्लान

Latest News

Featured

You May Like