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लड़कियों की मानसिकता में तेजी से आया बदलाव, करीब 61 % महिलाएं नहीं करना चाहती विवाह

हमारे समाज में शादी करना महिलाओं के लिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। लेकिन समय के साथ, महिलाओं को अविवाहित रहना अधिक पसंद आ रहा है। आइए जानते हैं इसकी प्रमुख वजहें...
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There is a rapid change in the mentality of girls, about 61% women do not want to marry.

Saral Kisan : 40 वर्षीय सुनीता ने सामाजिक समारोहों में जाना छोड़ दिया क्योंकि हर जगह उससे पूछा जाता था कि “शादी के लड्डू कब खिला रहे हो?”महिलाओं को सिंगल रहना समाज में एक तरह से वर्जित माना जाता है। अगर किसी समारोह में कोई अविवाहित/सिंगल महिला दिख जाए तो उसके बारे में तरह-तरह की बातें की जाती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए उत्सवों में जाना भी कठिन होता है।

वास्तव में, समाज का नियम है कि लोग जो कुछ नहीं रखते, उसके बारे में पूछते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से लड़कियों की मानसिकता में तेजी से बदलाव आ रहा है। सात जन्मों का बंधन मानने वाली शादी से लड़कियां दूर हो जाती हैं। आज वे अकेले रहना पसंद करते हैं और आत्मविश्वास से जीते हैं। ये लड़कियां जमाने के नियमों को झुठलाती हैं और पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से भरपूर दिखती हैं। आज भी उनकी प्राथमिकताएं बदल गई हैं।

हाल ही में हुए एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं सिंगल रहना ज्यादा पसंद करती हैं। डाटा एनालिस्ट ‘मिंटेल’ द्वारा किए गए इस अध्ययन के अनुसार, जहां 49 फीसदी पुरुष अपने सिंगल स्टेटस से खुश हैं, वहीं 61 फीसदी महिलाएं सिंगल रहना चाहती हैं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि सिंगल महिलाओं में लगभग 75 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने लिए साथी ढूंढने की कोशिश भी नहीं की, जबकि महिलाओं के मुकाबले ऐसे पुरुष केवल 65 फीसदी हैं।

सफलता के लिए विवाहित होना जरूरी नहीं -

पहले किसी महिला की सफलता-असफलता का अंदाजा  उसकी वैवाहिक स्थिति से लगाया जाता था। मतलब अगर महिला की शादीशुदा जिंदगी सुखी है तो वह सफल है और अगर वह असफल है तो इसके पीछे का कारण उसकी डिस्टर्बिंग वैवाहिक जिंदगी है। लेकिन आज की महिलाएं यह जान चुकी हैं कि उनकी सफलता का विवाह से कोई लेना-देना नहीं है। कोई महिला कितनी सफल है, यह उसके कॅरिअर और आत्मनिर्भर होने से जुड़ा मुद्दा है, न कि विवाह से जुड़ा।

स्वतंत्र रहने की चाहत -

हमारे देश का परिवारिक ढांचा ऐसा है, जिसमें पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाओं को भी आजादी नहीं मिल पाती है। उन पर तरह-तरह की पाबंदियां होती हैं। उन्हें हर बात का हिसाब देना पड़ता है। अगर वे बाहर काम करती हैं तो उन्हें घरेलू कामों से भी राहत नहीं दी जाती है। इसके अलावा उन्हें अपनी आय में से अपने ही ऊपर पैसे खर्च करने से पहले पूछना पड़ता है। शादीशुदा होने की स्थिति में भी उनके पैसे पर पति का ही अधिकार होता है। इस सबसे बचने के लिए ही आजकल लड़कियां सिंगल रहना ज्यादा पसंद करती हैं।

संपूर्णता और खुशी की गारंटी नहीं -

‘पत्नी और मां बने बिना औरत अधूरी है!’ यह जुमला अब पुराने जमाने की बात हो गई है। 36 वर्षीय तनु कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि शादी संपूर्णता और खुशी की गारंटी है। मैंने अपने बहुत से दोस्तों को देखा है, जो शादीशुदा होने के बावजूद अकेलापन और खुद को प्यार से वंचित महसूस करते हैं। अपने अंदर की रिक्तता को आप खुद ही भर सकती हैं, कोई और नहीं। मैं अपने कॅरिअर में खुश हूं और अपने शौक पूरे करके संतुष्ट  हूं।” आज अपने आस-पास टूट रहे वैवाहिक संबंधों को देखकर भी इन महिलाओं को अपने अकेले रहने के फैसले पर खुशी महसूस होती है।

तनु कहती हैं, “मैं घर से लेकर ऑफिस तक के काम में इतनी व्यस्त रहती हूं कि खुद के लिए भी फुरसत नहीं होती, तो अकेलापन कहां से महसूस होगा। वैसे भी घर में मम्मी-पापा सब हैं, तो कैसा अकेलापन।” इन महिलाओं को देखकर कहा जा सकता है कि कभी पति के दायरे में सिमटी रहने वाली भारतीय महिलाओं की सोच और जिंदगी अब तेजी से बदल रही है।

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