हर मंगलवार को जरूर कर ले ये कार्य, बजरंग बली खत्म करेंगे सारे कष्ट
Hanuman Ji Name Jaap: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग देवताओं को समर्पित हैं। मंगलवार का दिन हनुमान जी की पूजा-उपासना का दिन है. ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी कलयुग में लोगों के बीच रहते थे। मुश्किल समय में हनुमान जी को सच्चे मन से याद किया जाए, तो वे साक्षात दर्शन देते हैं और अपने भक्तों से सभी पीड़ा दूर करते हैं। ज्योतिषियों का कहना है कि मंगलवार को हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए हनुमानजी का व्रत रखा जाता है। साथ ही, उनकी कृपा कुछ ज्योतिषीय उपायों से मिल सकती है।
बता दें कि हनुमान जी को सिंदूर बेहद प्रिय है. ऐसे में बजरंगबली को सिंदूर का तिलक लगाएं. उनके समक्ष चमेल का दीया जलाएं और लड्डू का भोग लगाएं. आखिर में हनुमान जी के 108 नामों का जाप करें और आरती के साथ ही पूजा का समापन करें. मान्यता है कि अगर आप लगातार 11 मंगलवार तक ऐसे करते हैं तो जीवन से सभी दुखों का नाश होता है.
हनुमान जी के 108 नाम -
भीमसेन सहायकृते
कपीश्वराय
महाकायाय
कपिसेनानायक
कुमार ब्रह्मचारिणे
महाबलपराक्रमी
रामदूताय
वानराय
केसरी सुताय
शोक निवारणाय
अंजनागर्भसंभूताय
विभीषणप्रियाय
वज्रकायाय
रामभक्ताय
लंकापुरीविदाहक
सुग्रीव सचिवाय
पिंगलाक्षाय
हरिमर्कटमर्कटाय
रामकथालोलाय
सीतान्वेणकर्त्ता
वज्रनखाय
रुद्रवीर्य
वायु पुत्र
रामभक्त
वानरेश्वर
ब्रह्मचारी
आंजनेय
महावीर
हनुमत
मारुतात्मज
तत्वज्ञानप्रदाता
सीता मुद्राप्रदाता
अशोकवह्रिकक्षेत्रे
सर्वमायाविभंजन
सर्वबन्धविमोत्र
रक्षाविध्वंसकारी
परविद्यापरिहारी
परमशौर्यविनाशय
परमंत्र निराकर्त्रे
परयंत्र प्रभेदकाय
सर्वग्रह निवासिने
सर्वदु:खहराय
सर्वलोकचारिणे
मनोजवय
पारिजातमूलस्थाय
सर्वमूत्ररूपवते
सर्वतंत्ररूपिणे
सर्वयंत्रात्मकाय
सर्वरोगहराय
प्रभवे
सर्वविद्यासम्पत
भविष्य चतुरानन
रत्नकुण्डल पाहक
चंचलद्वाल
गंधर्वविद्यात्त्वज्ञ
कारागृहविमोक्त्री
सर्वबंधमोचकाय
सागरोत्तारकाय
प्रज्ञाय
प्रतापवते
बालार्कसदृशनाय
दशग्रीवकुलान्तक
लक्ष्मण प्राणदाता
महाद्युतये
चिरंजीवने
दैत्यविघातक
अक्षहन्त्रे
कालनाभाय
कांचनाभाय
पंचवक्त्राय
महातपसी
लंकिनीभंजन
श्रीमते
सिंहिकाप्राणहर्ता
लोकपूज्याय
धीराय
शूराय
दैत्यकुलान्तक
सुरारर्चित
महातेजस
रामचूड़ामणिप्रदाय
कामरूपिणे
मैनाकपूजिताय
मार्तण्डमण्डलाय
विनितेन्द्रिय
रामसुग्रीव सन्धात्रे
महारावण मर्दनाय
स्फटिकाभाय
वागधीक्षाय
नवव्याकृतपंडित
चतुर्बाहवे
दीनबन्धवे
महात्मने
भक्तवत्सलाय
अपराजित
शुचये
वाग्मिने
दृढ़व्रताय
कालनेमि प्रमथनाय
दान्ताय
शान्ताय
प्रसनात्मने
शतकण्ठमदापहते
योगिने
अनघ
अकाय
तत्त्वगम्य
लंकारि
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