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High Court : बेटे और बहू को घर से निकालने पहुंची बुजुर्ग मां, हाईकोर्ट ने दिया ऐसा आदेश

property rights : जमीन और संपत्ति से जुड़े विवाद बहुत कठिन होते हैं। यदि परिवार में संपत्ति विवाद हो तो यह और भी कठिन होता है अगर छोटी सी गलती होती है। संपत्तियों से संबंधित एक ऐसा ही मामला सामने आया है जहां एक मां ने अपने बेटे को संपत्ति से बाहर करने की कोर्ट से मांग की। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। नीचे खबर में विस्तार से पढ़ें: 

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High Court : बेटे और बहू को घर से निकालने पहुंची बुजुर्ग मां, हाईकोर्ट ने दिया ऐसा आदेश 

The Chopal, property rights : प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक और बंटवारे को लेकर हर दिन वाद-विवाद (property dispute) के मामले सामने आते हैं, और कोर्ट में अभी तक कितने ही मामले नहीं सुलझाए गए हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में भी ऐसा ही मामला सामने आया था। वास्तव में, यह मामला एक मां और इकलौते बेटे के बीच संपत्ति का विवाद था। जहां 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए कोर्ट पहुंची और अपने बेटे को संपत्ति से बाहर करने की मांग की। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस विवेक अग्रवाल भी दंग रह गए जब महिला ने जज को आपबीती सुनाई। उन्होंने घर को एक महीने के भीतर खाली करने का आदेश दिया। 

क्या पूरा मामला है? 

मामला शुरू हुआ जब 65 साल की एक बुजुर्ग महिला ने अपने बेटे को अपनी संपत्ति से बाहर निकालने की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की। महिला ने बताया कि उसका बेटा और बहू उसे घर से निकाल चुके हैं और पिछले एक साल से वह अपने रिश्तेदारों के यहां रह रही है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई जस्टिस विवेक अग्रवाल ने की।

कोर्ट की सुनवाई

सुनवाई के दौरान बेटे की ओर से पेश वकील ने कहा कि उनका मुवक्किल उनके साथ रह रहा था और उनकी मां की सही देखभाल कर रहा था। वकील ने कहा कि बेटा माता की संपत्ति पर अधिकारी है और अपने परिवार के साथ इस घर में रहता है। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने इस पर प्रश्न उठाया कि अगर मां देखभाल कर रही थी, तो बेटे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

इस पर वकील ने कहा कि महिला की तीन बेटियां हैं और वे भी चाहती हैं कि उन्हें माँ की संपत्ति में हिस्सा मिले। यद्यपि, जज ने इस दावा को खारिज करते हुए कहा कि इसका कोई वैध आधार नहीं था। कोर्ट ने महिला को भी सुनने का मौका दिया, जहां उसने अपनी दर्दनाक कहानी बताई।

महिला की दुर्घटना

कोर्ट में महिला ने रोते हुए कहा कि उसकी बहू उसे अक्सर धमकाती है, हाथ काटने की धमकी देती है, तो कभी फांसी लगाने की धमकी देती है। उसकी पत्नी उसे पुलिस और जेल में डालने की भी धमकी देती है। महिला ने बताया कि एक साल से वह रिश्तेदारों के यहां ठोकरें खा रही है और उसे बेटे और बहू ने घर से निकाल दिया है।

महिला ने बताया कि जिस घर को लेकर विवाद चल रहा था (पत्नी का अधिकार पति की संपत्ति में) उसके पति ने बनाया था। पति की मृत्यु के बाद बेटे को भी उनका काम मिल गया। हालाँकि बेटा अच्छी कमाई कर रहा है, उसने अपनी मां को अकेले बेघर कर दिया है। इस पर न्यायाधीश विवेक अग्रवाल भी भावुक हो गए और बेटे को घर खाली करने का आदेश दिया।

शांति का प्रयास

बेटे के अधिवक्ता ने सुझाव दिया कि पारिवारिक मामले में आपसी सहमति से समाधान किया जा सकता है। उनका कहना था कि महिलाएं अपनी बेटियों के साथ रहती हैं और पेंशन भी पाती हैं, इसलिए परिवार के साथ मिलकर समस्या को हल कर सकते हैं। वकील ने यह भी कहा कि बेटे को मकान के ग्राउंड फ्लोर पर एक मंजिल बनाने की अनुमति मिलनी चाहिए, ताकि वह अपने परिवार के साथ वहाँ रह सके।

इसके बावजूद, न्यायाधीश ने कहा कि महिला को किसी और के घर में रहने की आवश्यकता नहीं है। यह घर उनका है और उनके बेटे को इसे खाली करना होगा। जब न्यायाधीश ने महिला से सौदा करने की इच्छा के बारे में पूछा, तो उसने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया और कहा कि उसे अपने बेटे और बहू से जान का खतरा है।

कोर्ट का निर्णय

मामले की सुनवाई के बाद, कोर्ट ने बेटे को घर छोड़ने का आदेश दिया। लेकिन कोर्ट ने उसे एक महीने का समय दिया ताकि वह घर को खाली कर सके, बेटे के छोटे बच्चों को देखते हुए। कोर्ट ने कहा कि बुजुर्ग महिला को महीने भर के भीतर घर वापस दिया जाएगा।

बुजुर्गों की देखभाल के संबंध में कानून

भारत में बुजुर्गों की सुरक्षा और देखभाल के लिए कई कानून हैं। 'मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act)' सबसे महत्वपूर्ण कानून है। यह कानून बनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि बुजुर्ग माता-पिता की बुनियादी जरूरतें, जैसे भोजन, कपड़े, घर और चिकित्सा, पूरी की जाएं। यह कानून बच्चों और उनके बालिग पोते-पोतियों पर भी लागू होता है, ताकि बुजुर्गों की सुरक्षा की जा सके।

इस कानून के तहत बच्चों की जिम्मेदारी होती है कि वे अपने माता-पिता (पुत्र का अधिकार माता-पिता की संपत्ति पर) की देखभाल करें और उन्हें किसी भी तरह की परेशानी से बचाएं। यदि कोई बच्चा अपने माता-पिता की सही देखभाल नहीं करता या इस दायित्व से भागता है, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।

सजा का निर्धारण

"संरक्षण और सुरक्षा के माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों अधिनियम, 2007" के तहत कोई संतान अपने माता-पिता की देखभाल करने में असफल होती है या उन्हें उचित देखभाल नहीं देती तो उसे सजा मिल सकती है। दोषी पाए जाने पर इस कानून के तहत 3 महीने की जेल या 5000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। इसके अतिरिक्त, कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में सजा अधिक हो सकती है।

संपत्ति को वापस लेने का अधिकार

इस कानून की एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि बुजुर्ग माता-पिता ने अपनी संपत्ति बच्चों या किसी अन्य रिश्तेदार के नाम ट्रांसफर कर दी है, लेकिन उन्हें पर्याप्त देखभाल नहीं मिल रही है, तो वे अपनी संपत्ति (property rights) वापस पाने का अधिकार रखते हैं। इस कानून के तहत बुजुर्ग लोग अपनी संपत्ति वापस लेने के लिए कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं, ताकि वे अपने जीवन के अंतिम समय में सुरक्षित रह सकें।


 

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