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Consumer Rights: उपभोक्ता अदालत में जाने से पहलें पढ़ ले ये जरूरी बातें, 5 प्वाइंट में जानिए हल

Consumer Rights:  आए दिन कंपनियों और उपभोक्ताओं  के बीच विवाद के मामले सामने आते हैं। अक्सर लोग शिकायतें करते रहते हैं। आप किसी भी कंपनी से खरीदे गए सामान या उसकी सेवाओं से असंतुष्ट हैं तो उपभोक्ता फोरम (Consumer Courts) का रूख कर सकते हैं लेकिन इससे पहले आपको कुछ बातें जानना बेहद जरूरी है। 
 
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Consumer Rights: Before going to consumer court, read these important things, know the solution in 5 points

Saral Kisan News (ब्यूरो)। अक्सर अक्सर  उपभोक्ता  सामान बनाने वाली कंपनियों और सेवा प्रदान करने वालों से परेशान रहते हैं और शिकायत करते रहते हैं। मगर शिकायत के बाद क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी नहीं होने के कारण हम उलझकर रह जाते हैं और कोई हल नहीं निकल पाता। 

उपभोक्ता अदालतें में कम खर्च और कम समय में समस्या के समाधान का जरिया है। आइए, पहले जानते हैं उपभोक्ता फोरम का रूख करने से पहले हमें किन गलतियों से बचना चाहिए।

सबसे पहले जानें कौन माना जाता है उपभोक्ता

 सबसे पहले तो ये है कि आप उपभोक्ता की परिभाषा पर खरे उतरते हैं या नहीं। कंज्यूमर गाइडेंस सोसाइटी ऑफ इंडिया (CGSI) के मानद सचिव एमएस कामत कहते हैं कि आप उपभोक्ता तभी माने जाएंगे , जब आपने सामान निजी इस्तेमाल के लिए खरीदा हो। अगर आपने बिजनेस के मकसद से सामान की खरीद की है तो आपको उपभोक्ता नहीं माना जाएगा। उपभोक्ता सामान या सेवा में किसी कमी की शिकायत लेकर अदालत में जा सकता है मगर वो किसी योजना या नियम की वैधता को चुनौती नहीं दे सकता।

दिल्ली में रहने वाले उपभोक्ता मामलों के वकील सुमित बताते हैं उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि आप कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के सदस्य हैं और आपकी शिकायत है कि योजना गलत तरीके से लागू होने के कारण आपको नुकसान हो रहा है। इस सूरत में आप योजना को चुनौती दे सकते हैं। मगर बतौर consumer आप योजना की वैधता को चुनौती नहीं दे सकते।

कहां करें शिकायत, ये जानना भी जरूरी

आपको शिकायत किस फोरम में दर्ज करानी है ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपने मुआवजा कितना मांगा है। इंटरनैशनल कंज्यूमर राइट्स प्रोटेक्शन काउंसिल (ICRPC) के अध्यक्ष अरुण कहते हैं कि यदि उपभोक्ता के द्वारा 1 करोड़ रुपये से कम मुआवजा मांगा है तो जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) में जाएं। 

अगर 1 करोड़ रुपये से अधिक और 10 करोड़ से कम मुआवजे का दावा है तो राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत करें। वहीं अगर मुआवजा 10 करोड़ रुपये से ऊपर है तो इसे नई दिल्ली में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में जा सकते हैं। 
कई बार ऐसा होता है कि उपभोक्ता गलत फोरम में मुकदमा कर देते हैं और कई साल तक इंतजार करते रहते हैं। इसके बाद उन्हें दूसरे फोरम में जाने को कहा जाता है।

2 साल के अंदर करना होगा केस

जिस दिन आपको उत्पाद या सेवा में कमी की शिकायत हुई है, उसके 2 साल के अंदर ही मामला दायर किया जा सकता है। अरुण बताते हैं कि 5 लाख रुपये से कम मुआवजा मांगा गया है तो इस पर कोई कोर्ट फीस नहीं लगती।

अदालत NCLT में है?

ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (IBC) आने के साथ ही कर्ज में डिफॉल्ट के मामले राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (NCLT) में जाने लगे हैं। कुमार का कहना है कि मान लीजिए कि आपने किसी बिल्डर के खिलाफ उपभोक्ता मामला दर्ज कराया है मगर उसका मुकदमा मॉरेटोरियम में चला जाता है। उस सूरत में उपभोक्ता तब तक काम नहीं करेंगी, जब तक मॉरेटोरियम  (Moratorium) हटा नहीं लिया जाता।

क्या कानूनी रूप से बनता है मामला, ये जरूरी जानें

आप सबसे पहले पक्का मालूम कर लीजिए कि कानूनी नजरिये से आपका मामला बनता भी है या नहीं। इसे ऐसे समझें कि आपने 1 साल की वारंटी वाला कोई टेलीविजन खरीदा है। खरीदने के 2 साल बाद टीवी खराब हो गया। अब आप भावनाओं में बहकर ये नहीं कह सकते कि इतना महंगा टीवी कम से कम पांच-छह साल तो चलना ही चाहिए था। कामत कहते हैं सच ये है कि वारंटी खत्म हो गई है, जिससे उपभोक्ता इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकता ।

इन मामलों में सख्त हो रहीं अदालतें

पहले उपभोक्ता अदालतें (Consumer Courts) नियमों और शर्तों की व्याख्या काफी उदारता और नरमी के साथ करती थीं। मगर वक्त बदलने के साथ ही अब नियमों और शर्तों की व्याख्या काफी सख्त होने लगी है। 
वाहन बीमा को ही ले लीजिए। अगर आपकी दुर्घटना हो जाती है मगर आपके पास वैध रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) या परमिट नहीं है तो अदालत ये कहकर आपके बीमा के दावे के खारिज कर सकती हैं कि आपने बीमा कंपनी के साथ करार के अहम प्रावधान का उल्लंघन किया है। 

जीवन बीमा के फॉर्म अक्सर एजेंट भरते हैं और ग्राहक उस पर आंख मूंदकर साइन कर देता है। अगर ग्राहक को पहले से कोई बीमारी रहती है तो अक्सर वे उसकी जानकारी ही नहीं देते। पहले मौत होने पर उपभोक्ता अदालतें परिवार को राहत दिलाने के लिए बीमा राशि का कुछ हिस्सा तो बतौर मुआवजा दिला ही देती थीं । मगर कुमार बताते हैं, अब अदालतें मानती हैं कि यदि आपने किसी फॉर्म पर साइन किए हैं, तो उसमें लिखी हुई सभी बातों पर आपने अपनी रजामंदी दी है। कानून की सख्त व्याख्या देखते हुए ग्राहकों को किसी करार पर साइन करने से पहले उसे ध्यान से जरूर पढ़ लेना चाहिए।  

उपभोक्ताओं को करना चाहिए ये काम

Consumer Courts में भी कमियां होती हैं। इसलिए हर उपभोक्ता को खरीदारी के समय ही पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। उन्हें उत्पाद के बारे में लोगों की समीक्षा और प्रतिक्रिया जान लेनी चाहिए। कुमार की सलाह है, ‘यदि उपभोक्ता समझबूझकर खरीदारी करते हैं और खराब उत्पाद से कन्नी काट लेते हैं तो कंपनियों की कमाई पर चोट पड़ेगी। इससे उन्हें समस्या दूर करने पर मजबूर होना पड़ेगा और वे उपभोक्ताओं के प्रति लापरवाही करना बंद कर देंगी।

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