Success Story : 100 रुपये से 100 करोड़ का सफर, पढ़िए एक बुजुर्ग महिला की कहानी

आनंदपुर गांव की राजकुमारी देवी ने गरीबी के कारण खेती करने का निर्णय लिया. उन्होंने तंबाकु और पपीता की खेती की शुरुआत की और यहां तक कि उन्होंने अन्य सब्जियों की खेती भी आरंभ की. पपीता का बाजारी रेट उस समय 5 रुपये प्रति किलो था, इसलिए उन्होंने इसे खेती के लिए चुना. एक पेड़ से लगभग 70 से 80 किलो पपीता होता था और उन्हें अच्छी कमाई हुई.
 

Saral Kisan: आपका स्वागत है! यहां हम खेती और किसानी के बारे में चर्चा कर रहे हैं और उन्होंने विशेष रूप से महिला किसानों के बारे में भी उल्लेख किया है. गरीबी और आर्थिक समस्याएं किसान परिवारों को खेती के लिए मजबूर करती हैं, लेकिन इसके बावजूद, महिला किसानें खेती के माध्यम से अपने परिवारों को संतुष्टि देती हैं. आनंदपुर गांव की चाचरी ने अपने खेती व्यवसाय के माध्यम से बहुत उच्च आय कमाई है और वह अब अपना व्यापार देश और विदेश में बढ़ा रही हैं.

आनंदपुर गांव की राजकुमारी देवी ने गरीबी के कारण खेती करने का निर्णय लिया. उन्होंने तंबाकु और पपीता की खेती की शुरुआत की और यहां तक कि उन्होंने अन्य सब्जियों की खेती भी आरंभ की. पपीता का बाजारी रेट उस समय 5 रुपये प्रति किलो था, इसलिए उन्होंने इसे खेती के लिए चुना. एक पेड़ से लगभग 70 से 80 किलो पपीता होता था और उन्हें अच्छी कमाई हुई. उन्होंने कृषि मेला और प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए भी अपना दौर शुरू किया और उनकी अच्छी सब्जियों के लिए पुरस्कार प्राप्त होने लगे. वे आजकल प्रसिद्ध हो गई हैं और उन्हें कृषि क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.

महिला किसानों की खेती में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका होना बहुत अच्छी बात है. वे अपने परिवारों के लिए आर्थिक आधार प्रदान करके समाज में सम्मानित हो रही हैं. महिला किसानों को और उनकी खेती को समर्थन देना आवश्यक है ताकि वे और अधिक स्वावलंबी बन सकें और खेती सेक्टर में उनकी भूमिका को मजबूती मिले.

उनकी बातों के आधार पर, साइकिल चलाना परम्परागत रूप से गांवों में महिलाओं के लिए अवमाननीय या पाप समझा जाता था. इसलिए जब उन्होंने साइकिल सीखने का निर्णय लिया, तो लोग असम्मान और उपहास का सामना करना पड़ा. हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और साइकिल चलाने का कौशल सीखा. दौरे के दौरान अपवाद हो गया और उन्होंने अपनी हद्दी भी टूट दी, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष को नहीं छोड़ा और अपने व्यापार में सफलता प्राप्त की.

उन्होंने अचार बनाने का काम शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने स्वयं सहायता समूह की स्थापना की. उनकीटीम में शामिल होने के बाद, उन्होंने अचार उत्पादन और विपणन को संगठित किया. धीरे-धीरे आपके अचार का स्वाद लोगों को पसंद आने लगा और उनकीबिक्री बढ़ने लगी. उन्होंने अपनी टीम में और महिलाओं को प्रशिक्षित करना शुरू किया जिससे उन्हें अचार बनाने का कौशल सिखाया जा सके. उन्होंने विभिन्न सरकारी योजनाओं में भी अपना स्टॉल स्थापित किया और विक्रय की गतिविधियों में भाग लिया.

उनकी मेहनत और संघर्ष के परिणामस्वरूप, उन्होंने दो कंपनियों के साथ सहमति करके सम्मानित होने का मौका प्राप्त किया है. आपके साथ खादी ग्रामोद्योग विभाग और बिहार सरकार के बिस्कोमान ने सहयोग किया है और उनकीअचार उद्योग के रूप में सफलता मिली है. आपके काम से गरीब और बुजुर्ग महिलाएं भी जुड़ गई हैं और अब उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है.

उनकी प्रशंसा के लिए आपको 11 मार्च 2019 को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है और आपको बिहार सरकार ने भी सहयोग दिया है. आपके अचार व्यापार के माध्यम से, आप हजारों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में सहायता कर रही हैं और उनकी गरीबी को दूर कर रही हैं.

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