Success Story : 500 रुपये और छोटे से दफ्तर से शुरू किया सफर, आज है विशाल साम्राज्य

धीरूभाई अंबानी ने शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है। उन्होंने खुद रिलायंस की स्थापना की और फिर उसे देश की सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल किया। न तो उनके पास पैसे थे और न ही वे किसी कारोबारी घराने से आते थे।
 

Saral Kisan : धीरूभाई अंबानी ने शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है। उन्होंने खुद रिलायंस की स्थापना की और फिर उसे देश की सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल किया। न तो उनके पास पैसे थे और न ही वे किसी कारोबारी घराने से आते थे। उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर अरबों का कारोबार बनाया, हालांकि वह बचपन में अभावों में बिताया था। उन्होंने देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस की नींव महज 500 रुपये और तीन कुर्सी वाले एक दफ्तर से रखी। यद्यपि उनके पास पैसा नहीं था, लेकिन उनके भीतर कारोबार का ज्ञान था। उन्हें मिट्टी से पैसा कमाने का गुर मालूम था। आइए जानते हैं कि ठेले पर गांठिया बेचने वाले धीरजलाल हीराचंद कैसे धीरूभाई अंबानी बन गए।

गांठिया बेचने से शुरू

28 दिसंबर 1933 को गुजरात के छोटे से कस्बे में धीरूभाई अंबानी का जन्म हुआ। उनके पिता एक साधारण शिक्षक थे, और उनकी मां घरेलू महिला थी। पांच भाई-बहन दो कमरे के घर में रहते थे। धीरूभाई अंबानी ने परिवार को पैसे देने के लिए गांठिया बेचने लगे। गिरनार पहाड़ियों के पास उन्हें गांठिया बेचा जाता था। वह अपनी मां को दो पैसे देता था। 1949 में, उन्होंने अपनी दसवीं पास करने के बाद अपने भाई रमणीकलाल के साथ यमन चले गए। वे वहां एक पेट्रोल पंप पर काम करने लगे। 300 रुपये की सैलरी पर उन्हें पहली नौकरी मिली, लेकिन पेट्रोल पंप मालिक ने उनकी मेहनत को देखकर उन्हें मैनेजर बना दिया। धीरूभाई की ध्यान नौकरी पर नहीं था। उन्हें हमेशा कारोबार करना पसंद था। उनके पास जो बच गया था, उसे लेकर वे देश लौट गए।

500 रुपये से शुरू हुआ

500 रुपये के साथ वह मुंबई गए। अपने चचेरे भाई चंपकलाल दिमानी की मदद से उन्होंने रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की स्थापना की। उनके पास पहले से ही कारोबार का ज्ञान था। उन्होंने अपनी कंपनी को पश्चिमी देशों में अदरक, हल्दी और अन्य मसाले बेचना शुरू किया। धीरूभाई अंबानी ने कारोबार में प्रवेश किया था। उनके पास मांग और बाजार की अच्छी जानकारी थी। उन्हें पता था कि आने वाले दिनों में पॉलिएस्टर कपड़े की मांग बढ़ेगी। वह हमेशा आगे की ओर सोचते थे और फिर अपना व्यवसाय शुरू करते थे।

मिट्टी बेचकर कमाई की

धीरूभाई अंबानी ने मिट्टी बेचकर अरब के एक शेख को कमाई की, जो उनकी कारोबारी क्षमता और समझ को दर्शाता है। Arab शेख को अपने बगीचे में गुलाब के फूल चाहिए थे। इसलिए उन्हें विशिष्ट मिट्टी चाहिए थी। धीरूभाई अंबानी ने शेख को भारत से मिट्टी भेजी जैसे ही यह पता चला। शेख ने इसके बदले मुंह मांगी कीमत दी। मसालों के बाद धीरूभाई ने टेक्सटाइल का कारोबार शुरू किया। वे पॉलिएस्टर निर्यात करने लगे। उनका पहला ब्रांड Vimal था।

ऑफिस खुला, तीन कुर्सी

उनकी नई कंपनी, रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन, ने 350 वर्ग फुट का एक कमरा मुंबई में किराए पर लिया। ऑफिस में एक मेज, तीन कुर्सी और लिखने का पैड था। उन्होंने 1966 में गुजरात के अहमदाबाद में 'रिलायंस टैक्सटाइल्स' नामक एक कपड़ा मिल की स्थापना की। धीरे-धीरे उन्होंने मैग्नम, पेट्रोकेमिकल, प्लास्टिक और बिजली का उत्पादन शुरू किया। काम के मुकाबले स्थान कम होने लगा। उनका बड़ा कार्यालय मुंबई में था।

काम के साथ-साथ परिवार भी महत्वपूर्ण है

व्यवसाय की शुरुआत में, उन्हें प्रतिदिन चार से पंद्रह घंटे काम करना पड़ा। लेकिन वे परिवार के साथ हर समय बिताते थे। उन्हें न तो घूमना-फिरना पसंद था और न ही पार्टी करना। काम करने के बाद वे अपना सारा समय परिवार को देते थे। साल 1977 में, उन्होंने अपनी कंपनी का नाम रिलायंस इंडस्ट्रीज रखा, हालांकि उन्होंने इसका नाम तीन बार बदला। उन्होंने 1977 में भारत का पहला आईपीओ बनाने का निर्णय लिया। धीरूभाई अंबानी ने रिस्क लेने में माहिर किया था। धीरूभाई अंबानी, जो एक मजबूत व्यक्तित्व था, पैसे से पैसा बनाने लगे। उन्हें शेयर बाजार की अच्छी समझ थी। रिलायंस ने पहली बार एनुअल बैठकों के लिए एक स्टेडियम बुक करवाया था। धीरूभाई के भरोसे से कंपनी निरंतर विकसित हुई। 6 जुलाई 2002 को उनका जन्म हुआ था। जब वे चले गए, रिलायंस इंडस्ट्रीज मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी में विभाजित हो गई।

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