चिमटा, बेलन, कढ़ाई, कद्दूकस को अंग्रेजी में क्या कहा जाता हैं, हर दिन होते हैं किचन में प्रयोग

मांओं ने रोटी बनाने से लेकर बच्चों को ठीक करने तक चिमटे का बहुत उपयोग किया है। रोटी सेकने और पलटने के लिए चिमटे का उपयोग किया जाता है।
 

Saral Kisan : जब आप किचन में जाते हैं, आपको कई तरह का खाना दिखाई देता है। चिमटा, बेलन, कढ़ाई, कद्दूकस और बहुत कुछ। साथ ही, अगर आप अतीत की ओर देखते हैं तो आपको किचन में ओखली और सिलबट्टा जैसी चीजें भी देखने को मिलती हैं, जो आज शायद ही किसी घर में हैं। लेकिन आप इन बर्तनों को अंग्रेजी में क्या कहते हैं? आप शायद चाकू, चम्मच, कटोरी, प्लेट और गिलास को जानते होंगे। आप शायद नहीं जानते कि अन्य बर्तनों को अंग्रेजी में क्या कहते हैं। हम आज इस लेख में आपको हर दिन किचन में प्रयोग होने वाले बर्तनों के अंग्रेजी नाम बताएंगे।

कढ़ाई

भारतीय रसोई में कढ़ाई अनिवार्य है। इस बर्तन में हर दिन सब्जी से लेकर हलवा तक बहुत कुछ पकाया जाता है। भारतीय महिलाओं को कढ़ाई के किचन में काम करना असंभव है। अंग्रेजी में कढ़ाई को ड्रिपिंग पैन कहा जाता है।

कद्दूकस

अब ज्यादातर रसोईयों में कद्दूकस नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक मशीन ने इसका स्थान ले लिया है। इसके बावजूद, आज भी ग्रामीण भारत में और कई शहरी घरों में किसी भी सब्जी या फल को रेतने या कसने के लिए इसी का उपयोग किया जाता है। कद्दूकस हर जगह होता है, चाहे वह मूली का रायता हो या गाजर का हलवा। इसी से लौकी का कोफ्ता बनाया जाता है। अंग्रेजी में कद्दूकस को ग्रेटर कहते हैं।

चिमटा

मांओं ने रोटी बनाने से लेकर बच्चों को ठीक करने तक चिमटे का बहुत उपयोग किया है। रोटी सेकने और पलटने के लिए चिमटे का उपयोग किया जाता है। मां भी इसका इस्तेमाल करती है जब बच्चे शरारत करते हैं। आजकल के बच्चों को शायद इनसे नहीं पाला गया है, लेकिन एक समय था जब मां दूर से चिमटा दिखाकर समझाती थी कि अब शरारत करने वालों को मारना पड़ेगा। अंग्रेजी में चिमटा को टोंग्स कहते हैं।

ओखली

आज के घरों में ओखली नहीं मिलती। ना ही आज की महिलाएं इसका उपयोग करती हैं। लेकिन पहले घर की महिलाएं मसालों को कूटने के लिए ओखली का इस्तेमाल करती थीं। यह आज भी राजस्थान और हरियाणा के कुछ हिस्सों में मसालों को कूटने के लिए प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी में ओखली को मॉर्टर या पाउंडर कहते हैं।

सिलबट्टा

ज्यादातर भारतीय घरों में अब सिलबट्टा नहीं है। शहरों में इसका उपयोग नहीं होता। आज के बच्चे शायद इसका नाम भी नहीं जानते होंगे। गांवों में, फिर भी पूजा के समय या किसी खास अवसर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन मसाले से चटनी तक इसी सिलबट्टे पर पीसने का एक चरण था। यह भी सही है कि सिलबट्टे का इस्तेमाल करने में महिलाओं को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी, जिससे उनकी कमर में दर्द होता था। सिलबट्टी को अंग्रेजी में ग्राइंडिंग स्टोन कहते हैं।

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