UP New State : किस तरह किया जाता है राज्य का बंटवारा, जानिए ससंद की मंजूरी के बाद क्या होता है प्रोसेस

UP New State : अक्सर कई लोगों के मन में ये सवाल होता है कि आखिर राज्य का बंटवारा किस आधार पर होता है। सबसे पहले, संबंधित राज्य के विधानमंडल को बंटवारे से जुड़ा एक प्रस्ताव पारित करना होता है। इसके बाद यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है। हालांकि, यह अनिवार्य नहीं है...तो चलिए आइए नीचे खबर में जाने विस्तार से।
 

Saral Kisan : लोकसभा चुनाव 2024 में भले ही अभी समय है लेकिन चुनाव के मुद्दे और एजेंडे अभी से सेट होने लगे हैं। बिहार सरकार की तरफ से जातिगत जनगणना के परिणाम के बाद अब अचानक यूपी के बंटवारे की मांग सामने आई है। बीजेपी नेता और केंद्र में राज्य मंत्री संजीव बालियान ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मांग की है।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि बीजेपी सांसद की यह मांग पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी के लोकसभा चुनाव में मजबूत होती स्थिति को देखते हुए की गई है। हालांकि, बीजेपी के अन्य नेता संगीत सोम ने इसका विरोध कर दिया है। इन सब के बीच जान लेते हैं कि आखिर किसी राज्य से अलग एक नए राज्य का गठन कैसे होता है।

कैसे होता है राज्य का बंटवारा?

सबसे पहले, संबंधित राज्य के विधानमंडल को बंटवारे से जुड़ा एक प्रस्ताव पारित करना होता है। इसके बाद यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है। हालांकि, यह अनिवार्य नहीं है। संसद राष्ट्रपति के निर्देश के माध्यम से स्वत: संज्ञान लेकर इस मुद्दे को उठा सकती है। एक बार जब यह केंद्र तक पहुंच जाता है तो गृह मंत्रालय इस मुद्दे की जांच करता है। इसके बाद इस प्रस्ताव को कानून मंत्रालय को भेजा जाता है।

कानून मंत्रालय इसपर विचार करता है। इसके बाद उसे कैबिनेट को भेजता है। संसद के दोनों सदनों में रखने से पहले केंद्रीय कैबिनेट को इसे मंजूरी देनी होती है। राज्यसभा और लोकसभा को दो-तिहाई बहुमत के साथ प्रस्ताव पारित करना होता है। इसकी वजह है कि यह अनुच्छेद 3 में एक संविधान संशोधन होता है जो 'नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन' से संबंधित है।

संसद की मंजूरी के बाद क्या होता है?

संसद की तरफ से मंजूरी की मुहर लगाने के बाद, राज्य के भौतिक गठन का जटिल मुद्दा शुरू होता है। नए प्रशासन के लिए आवश्यक रसद केंद्र की तरफ से नए राज्य के निर्माण के लिए चीजों को एक साथ रखने के लिए अधिकारियों की एक टीम भेजने के साथ शुरू होती है। पहले कार्यों में से एक सीमा का निर्धारण होता है। अन्य आवश्यकताओं में प्रशासनिक और पुलिस कैडर की स्थापना, राजस्व दस्तावेजों का हस्तांतरण और नए कार्यालय भवनों की स्थापना जैसे बुनियादी ढांचे शामिल हैं। आईएएस और आईपीएस कैडर और सरकारी कर्मचारियों को दोनों राज्यों के बीच चयन करने का विकल्प दिया जाता है। कर राजस्व का बंटवारा मौजूदा महालेखाकार कार्यालय की सहायता से मौजूदा राज्य के मुख्य सचिव के मार्गदर्शन में दोनों राज्यों की एक वार्ता टीम के जरिये किया जाता है।

नए राज्य में कब होते हैं चुनाव-

सके अलावा धन के हस्तांतरण का अहम मुद्दा होता है। वित्त आयोग की तरफ से इस मुद्दे को देखा जाता है। मौजूदा राज्य और नए राज्य के बीच राजस्व साझाकरण होता है। जब तक वित्त आयोग फॉर्मूला तैयार नहीं कर लेता, तब तक केंद्र अंतरिम आवंटन करता है। नए राज्य में एक नया हाई कोर्ट भी होता है। राजनीतिक शासन के लिए, नए राज्य में पड़ने वाले निर्वाचन क्षेत्रों के विधायक स्वचालित रूप से नवगठित राज्य के विधायक बन जाते हैं। विधायकों के पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद ही राज्य विधानसभा के लिए चुनाव करवाए जाते हैं।

ये पढ़ें : उत्तर प्रदेश के 85 गांवों की जगह पर बसाया जाएगा ये नया शहर, पहले चरण में 3 हजार हेक्टेयर जमीन होगी अधिग्रहण