यह है देश का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन, पहुंचने में लगता है इतना समय

इन ट्रेनों का सफर, 7 हजार से अधिक रेलवे स्टेशनों से होकर गुजरता है। इस कड़ी में, हम आपको भारत के सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन के बारे में बताने की योजना बना रहे हैं, जिस स्थल पर सबसे ऊंची ऊंचाई पर ट्रेन चलती है, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ के सफर में एक अलग मजा आता है।
 

Saral Kisan : भारतीय रेलवे, जिसे देश की जीवन-रेखा माना जाता है, उसकी महत्ता कई पहलुओं में छिपी हुई है। हमारे देश का रेलवे नेटवर्क विश्व का चौथा सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा है। इस नेटवर्क के तहत, प्रतिदिन करोड़ों यात्री 13 हजार से अधिक पैसेंजर ट्रेनों के माध्यम से अपने गंतव्यों की ओर अग्रसर होते हैं।

इन ट्रेनों का सफर, 7 हजार से अधिक रेलवे स्टेशनों से होकर गुजरता है। इस कड़ी में, हम आपको भारत के सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन के बारे में बताने की योजना बना रहे हैं, जिस स्थल पर सबसे ऊंची ऊंचाई पर ट्रेन चलती है, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ के सफर में एक अलग मजा आता है।

नवाबियत रेलवे स्टेशन

भारतीय रेलवे, जिसे दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल नेटवर्क माना जाता है, वह व्यापकतम स्तर पर एक बहुत बड़े प्रमाण में सफर का संचार कराता है। इसके साथ ही, एशिया में भी यह दूसरे पायदान पर स्थित है। रेलवे के माध्यम से प्रतिदिन करोड़ों यात्री अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं, इससे देश की जीवन-रेखा के रूप में उसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

आपने शायद भारत में विभिन्न रेलवे स्टेशनों के बारे में पढ़ा या सुना होगा। लेकिन क्या आपको ज्ञात है कि भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन कहां स्थित है? यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस रहस्यमय स्थल के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करेंगे। इसके साथ ही, रेलवे स्टेशन से जुड़े अन्य दिलचस्प तथ्यों की भी जांच करेंगे।

सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन की पहचान

जब हम भारत के सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन की चर्चा करते हैं, तो यहां पर हमारे सामने दार्जिलिंग के हिमालयी दृष्टिकोण में स्थित घुम रेलवे स्टेशन की ऊंचाई आती है, जो कि भारतीय रेलवे के दर्शनीय दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का हिस्सा है। यह रेलवे स्टेशन भारत में 2,258 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

यात्रा करने में लगते थे 4-5 दिन

हिमालयन रेलवे की शुरुआत से पहले, कोलकाता से दार्जिलिंग की यात्रा के लिए 4 से 5 दिन लगते थे। इसका कारण था कि यात्रियों को पहले भाप इंजन के साथ अपनी यात्रा करनी पड़ती थी, जिनसे वे हिमालयी पर्वतमाला की ऊँचाइयों तक पहुँच सकते थे।

उसके बाद, वे नावों का इस्तेमाल करके गंगा नदी को पार करके साहिबगंज तक पहुँचते थे। वहां पहुँचने के बाद, उन्हें आगे का सफर बैलगाड़ी और अन्य साधनों के साथ पूरा करना पड़ता था। इस कारण, दार्जिलिंग पहुँचने में यात्रियों को 4 से 5 दिन का समय लगता था।

1879 में शुरू हुआ निर्माण कार्य

हिमालय रेलवे का निर्माण कार्य 1879 में आरंभ हुआ था। इस दौरान, 1881 में रेलवे लाइन को घामौर तक पहुँचाया गया। रेल सेवा की शुरुआत होने के बाद, यहां पर छोटे इंजन का इस्तेमाल किया जाने लगा और यात्रियों को हल्के और छोटे कोच इंजन में यात्रा करने की सुविधा दी गई।

यात्रा के दौरान आता है रेलवे का प्रसिद्ध मोड़

इस यात्रा के दौरान, जब भी आप जाएंगे, तो आपके रास्ते में एक प्रसिद्ध रेलवे मोड़ आएगा, जिसे बतासिया मोड़ के नाम से जाना जाता है। इस मोड़ पर, रेल एक पहाड़ी की ऊँचाईयों से होकर गोल घेर बनाती है।

ऐसे में भारत में सबसे ऊंचे रेल सफर के दौरान मनमोहक वादियों के बीच यहां का खूबसूरत नजारा आंखों को सुकून पहुँचाता है।

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