Supreme Court ने संपत्ति के बंटवारे को लेकर किया नया फैसला, जाने कैसे व किस पर होगा इसका असर

सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के बंटवारे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि अवैध शादी करने वाले बच्चों को माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। भले ही ये सम्पत्ति स्वयं प्राप्त की गई हो या पैदा की गई हो।आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।

 

Saral Kisan : चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की एक बेंच ने इस निर्णय को दिया है। हिंदू मिताक्षर कानून के तहत संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति पर यह निर्णय लागू होगा।

क्या था ये मामला-

2011 के एक निर्णय के खिलाफ दायर याचिका इस मामले से संबंधित है।  2011 के इस निर्णय में भी अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को प्रॉपर्टी मिलेगी, चाहे वह खुद अर्जित हो या पैतृक हो। इस निर्णय ने कहा कि ऐसे रिश्ते में बच्चे का जन्म मामले से अलग होना चाहिए। अमान्य शादियों में रहने वाले बच्चों को मान्य शादियों से होने वाले बच्चों की तरह समान अधिकार मिलने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया क्योंकि इस मामले में बहस पूरी हो चुकी थी।

क्या होता है विवाह-भारत में विवाह एक धार्मिक प्रक्रिया है जिसके साथ कानूनी अधिकार भी जोड़े गए हैं. भारत में धार्मिक विविधता के कारण शादी के लिए कई कानून हैं. इसमें हिंदू मैरिज एक्ट, क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, मुस्लिम पर्सनल लॉ, और स्पेशल मैरिज एक्ट आदि. इन सभी कानूनों का उद्देश्य है कि एक शादी को समाज में स्वीकृति मिले और पत्नी से लेकर बच्चों तक को उनके अधिकार मिलें. इन सभी कानूनों में इस बात के भी नियम हैं कि किन दो के बीच शादी संभव है और किन परिस्थितियों में शादी से बाहर निकला जा सकता है.

कानून के अनुसार कितनी तरह के होते हैं विवाह-विवाह 3 तरह के होते हैं पहला वैध विवाह या मान्य विवाह होता है जो नियमों के अनुसार होता है इसे कानूनी दर्जा हासिल होता है और शादी में बंधने वाले और आगे उनके बच्चों को अपने आप सभी अधिकार हासिल हो जाते हैं.

दूसरा विवाह होता है अमान्य (Void) विवाह. दरअसल नियमों के तहत कुछ मामलों में विवाह संभव ही नहीं है. जैसे हिंदू मैरिज लॉ में एक शादी के रहते दूसरी शादी संभव नही है. लेकिन अगर शादी होती है तो इस शादी को अमान्य विवाह कहा जाता है. हिंदू कानून के हिसाब से अमान्य विवाह में पुरुष और महिला को पति पत्नी का दर्जा नहीं मिलता. यही वजह है कि ऐसी शादी को खत्म करने के लिए किसी कानूनी आदेश की जरूरत नहीं होती. साथ ही पत्नी कोई दावा भी नहीं कर सकती.

तीसरा विवाह होता है अमान्यकरणी (Voidable) विवाह यहां दोनों पक्षों में एक पक्ष विवाह को अमान्य करने की मांग करता है. और कानूनी आदेश के आधार पर विवाह को अमान्य घोषित करता है. ये तलाक से अलग होता है. जहां पर दो लोग शादी के बंधन को तोड़ने की मांग करते हैं. हालांकि अमान्यकरणी विवाह में शादी को ही रद्द करने की माग की जाती है और पक्ष अविवाहित माने जाते हैं, हालांकि तलाक के बाद दोनों पक्ष तलाकशुदा माने जाते हैं.  शुक्रवार के फैसले में अमान्य और अमान्यकरणीय विवाह के मामलों को लेकर ही फैसला दिया गया है.

ये पढ़ें : उत्तर प्रदेश में यहां बनेंगे 2 नए एक्सप्रेसवे, सीएम योगी ने अधिकारियों को जारी किए निर्देश