हाईकोर्ट ने सुनाई उम्रकैद की सजा, Supreme Court ने 27 साल बाद शख्स का केस किया खारिज

Supreme Court Decision : एक पैचिदा केस सामने आया है। दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को उम्रकैद की सजा दी थी। लेकिन 27 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को रिहा कर दिया। आइए नीचे खबर में जानते हैं शख्स ने क्या किया था ऐसा जुर्म....

 

Supreme Court Decision : जिस मर्डर केस में एक शख्स 27 सालों तक जेल में कैद रहा, अब उसी केस में शख्स को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने बाराबंकी में हुए मर्डर केस में 27 साल तक सजा काटने वाले शख्स को नाबालिग करार दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घटना के वक्त आरोपी नाबालिग था. ऐसे में मर्डर मामले में उसे दी गई उम्रकैद की सजा खारिज की जाती है. बताया जा रहा है कि जुवेनाइल के दौरान शख्स करीब साढ़े चार साल जेल में गुजार चुका है. मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अलग-अलग रिपोर्ट में उम्र अलग-अलग बताई गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शख्स की जो मेडिकल रिपोर्ट बनाई गई, उसमे में कहा गया कि आरोपी की उम्र घटना के वक्त 19 साल थी, जबकि स्कूल के रजिस्टर में 16 साल बताई गई. हालांकि, पंचायत रजिस्टर में उम्र 20 साल थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मेडिकल रिपोर्ट में बताई गई उम्र 19 साल मान ली भी जाए तो भी यह आकलन सटीक नहीं होती है. ऐसे में आरोपी को एक साल का फायदा दिया जाता है।

वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी को उम्रकैद की सजा दी थी. यह घटना एक दिसंबर 1995 की है. बाराबंकी में खेत में पानी डालने को लेकर विवाद हुआ था. आरोप है कि आरोपी ने पीड़ित पर हमला किया था और उसकी मौत हो गई थी. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-1986 के तहत 16 साल तक की उम्र को जुवेनाइल माना गया था. साल 2000 में एक्ट में संशोधन कर 16 साल की उम्र को बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया. मौजूदा मामले में ट्रायल 1999 में पूरा हो गया था।

जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में अडिशनल सेशन जज से रिपोर्ट मांगी. मेडिकल रिपोर्ट पेश की गई. रिपोर्ट में कहा गया कि आरोपी की उम्र घटना के वक्त 19 साल थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट एकदम सटीक नहीं होती. उसमें दो साल का ऊपर-नीचे हो सकता है. कोर्ट ने आरोपी को घटना के वक्त जुवेनाइल माना और मर्डर केस में दी गई उम्रकैद की सजा को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा-16 किसी भी जुवेनाइल आरोपी की सजा पर रोक लगाती है।

हालांकि, माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नजीर साबित हो सकता है. उम्र पर विवाद हो तो ऐसी स्थिति में उम्र का पता लगाने के लिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा-94 के प्रावधान का इस्तेमाल होगा. धारा-94 कहती है कि मैट्रिकुलेशन के सर्टिफिकेट में जो जन्म तिथि है वही मान्य होगी. अगर मैट्रिक का सर्टिफिकेट नहीं है तो फिर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन या पंचायत की ओर से जारी बर्थ सर्टिफिकेट मान्य होगा।

ये दोनों न हों तो ओसिफिकेशन टेस्ट यानी बोन एज टेस्ट (मेडिकल एज टेस्ट) की रिपोर्ट के आधार पर उम्र तय की जाएगी. मेडिकल रिपोर्ट में जो उम्र बताई जाती है उसमें दो साल आगे या पीछे की संभावना रहती है और कोर्ट इस पर संज्ञान लेता है. इस तरह देखा जाए तो यह फैसला आने वाले दिनों में नजीर की तरह पेश होगा. किसी भी स्टेज पर अगर आरोपी नाबालिग साबित हो जाए तो उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का फायदा मिलेगा।

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