Special: उत्तर प्रदेश के इस गांव में मुर्गे की बजाए चमगादड़ों के शोर से होती है लोगों की सुबह
Saral Kisan : कहावत है कि सुबह मुर्गे की बांग से होती है, लेकिन प्रतापगढ़ में एक गांव में ग्रामीण मुर्गे की बांग से नहीं, बल्कि चमगादड़ की आवाज़ से सुबह होती है। ग्राम पंचायत गोईं, बाबा बेलखरनाथधाम ब्लाक में वर्षों से चमगादड़ों का घर है।
गोईं गांव के मो. रज्जाक ने बताया कि परिवार के बुजुर्गों ने बताया कि ग्रामीणों ने पहले चमगादडों को गांव से बाहर निकाला क्योंकि वे इसे बुरा समझते थे। इन्हें गांव से बाहर निकालने की बहुत सी कोशिशें की गईं। ग्रामीणों की कोशिश चमगादड़ों को प्रभावित नहीं कर सकी, भले ही पटाखे और टायर छोड़े गए हों। वह कुछ समय के लिए पेड़ छोड़कर उड़ गए, लेकिन अवसर देखकर वापस आ गए। आखिरकार, लोग थक गए और इन्हें भगाना बंद कर दिया। नतीजतन, वे गांव के हर पेड़ पर बस गए। अब गांव की चमगादड़ के बीच रहना एक आदत बन गया है। यह शोर सुबह मचाने लगता है, तो लगता है बिस्तर छोड़ने का समय हो गया है।
दरवाजे के सामने भी एक पेड़ पर लटकते हैं
कई दशक पहले, जब गांव में अधिकांश घर मिट्टी के होते थे, चमगादड़ भी घरों में रहते थे। यह चमगादड़ छोटे थे, लेकिन गोईं गांव के चमगादड़ इतने बड़े थे कि लोग उन्हें देखकर डर जाते थे। गांव के कई मकानों के सामने स्थित एक पेड़ पर भी सैकड़ों चमगादड़ लटकते रहते हैं, जिनसे लोगों को कोई परवाह नहीं है।
कोरोना काल में ग्रामीण
कोरोनावायरस का प्रसार बढ़ने लगा तो यह भी चर्चा हुई कि यह चमगादड़ से फैलता है। यह पता चलने पर गोईं गांव के लोग घबरा गए, लेकिन किसी ने भी पेड़ों पर लटक रहे हजारों चमगादड़ों को दूर करने की कोशिश नहीं की। गांव के दयालु मिश्र ने बताया कि कोरोना काल में लोगों ने इन्हें भगाने की सलाह दी थी, लेकिन गांव वालों ने ऐसा नहीं किया।
ग्रामीणों को कोई नुकसान नहीं
गोईं गांव के अधिकांश पेड़ों पर लटक रहे चमगादड़ों को लेकर बाहर के लोगों ने बहुत कुछ कहा, लेकिन लोगों का मानना है कि चमगादड़ों ने कभी गांव वालों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। यही कारण है कि गांववासी अब इन्हें भगाने की कोशिश भी नहीं करेंगे।
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