अंग्रेजों के समय में बनाया गया रामगंगा रेलवे पुल, आज भी है खूबसूरती की मिसाल
इस पुल की यह खास इसे गिने-चुने पुलों में से एक बनाती थी। हालांकि बाद में इस पुल पर ट्रेनों का दबाव बढ़ने पर नया पुल जाने के बाद इस पर केवल रेल पटरी ही रह चुकी है। डामर की सड़क खत्म हुई है।
Ramganga Bridge: अंग्रेजों के जमाने में बने रामगंगा पुल आज भी एक सुंदरता की मिसाल है। इस पुल की लोहे की गर्दर एक गुफा के अंदर से नजर आती है। शायद केवल कुछ ही लोगों को पता होगा कि इस पुल पर ट्रेन के साथ-साथ कारें और दोपहिया वाहन भी दौड़ते थे। इस पुल की यह विशेषता इसे रेलवे के अन्य पुलों से अलग बनाती थी। हालांकि, इस पुल पर ट्रेनों की भारी भरमार के बाद, नए पुल का निर्माण हुआ, जिसके बाद यह केवल रेलवे के लिए रह गया। वाहनों के लिए बनी डामर सड़क को छोड़ दिया गया।
कटघर में, शहर के बाहरी हिस्से में, रामगंगा नदी को पार करने के लिए एक ही पुल था। इस पुल पर कोलतार की सड़क थी। इसके बगीचे में दो रेलवे पटरियां भी थीं, एक मीटर गेज और एक ब्रॉड गेज की। मीटर गेज वाली लाइन पर काशीपुर और रामनगर की ट्रेन चलती थी, जबकि ब्रॉड गेज वाली लाइन पर रामपुर और बरेली की ट्रेनें दौड़ती थीं।
एक ओर रेलवे लाइन और दूसरी ओर रामगंगा और गागन नदियों से घिरे मुरादाबाद के लोग अपनी खुदाई के लिए रेल पटरी के साथ सड़क का उपयोग करते थे। यह अनुभव बॉलीवुड की फिल्म से कम नहीं था, जहां गतिमान ट्रेनों के साथ हीरो-हीरोइन अपनी कार में दौड़ते दिखाई देते थे।
मुरादाबाद में बसने वाली गीता राम शर्मा बताती हैं कि कटघर में रामगंगा पुल से आने जाने के लिए रेलगाड़ी और सड़क एक साथ-साथ जाते थे। पुल पर दो रेल लाइनें थीं। काशीपुर रोड से आने-जाने के लिए साइकिल, बैलगाड़ी और गाड़ियों की संख्या भी बढ़ गई थी। दूध और सब्जियों के विक्रेता भी सड़क मार्ग का इस्तेमाल करते थे।
1975 तक, पुल पर रेलगाड़ी और बस एक साथ चलते रहे। कटघर में स्थित रामगंगा पुल पर 1975 तक रेलगाड़ी और अन्य वाहनों का यातायात चलता रहा। रेलवे से रिटायर्ड इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारी परविंदर सिंह बताते हैं कि मुरादाबाद में रामगंगा पुल पर 1975 तक रेलगाड़ी और अन्य वाहनों का साथी यातायात होता था।
जब अमृतसर-हावड़ा मार्ग पर ट्रेनों की भरमार बढ़ गई, तो रेलवे ने एक नया पुल बनाने का काम शुरू किया। इसके बाद, इस पुल का इस्तेमाल सिर्फ ट्रेनों के लिए होने लगा, और वाहनों के लिए बनी सड़क का इस्तेमाल बंद कर दिया गया।
आंदोलन के बाद, छोटी लाइन से बड़ी लाइन में परिवर्तन हुआ। देश में ब्रॉड गेज का क्षेत्र बढ़ने लगा तो काशीपुर में मीटर गेज को ब्रॉड गेज में बदलने की मांग बढ़ गई। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी, और काशीपुर और रामनगर में मीटर गेज से ब्रॉड गेज में परिवर्तन की मांग उभरने लगी।
इस आंदोलन के परिणामस्वरूप, कांग्रेस सरकार ने काशीपुर की लाइन को बड़ी लाइन में बदलने का निर्णय लिया। 1988 में, तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया और एनडी तिवारी सरकार ने मीटर गेज को ब्रॉड गेज में परिवर्तन किया।
ये पढ़ें : उत्तर प्रदेश में अब यहां लगेंगे 40 हजार एकड़ में उद्योग, 6 महीने में पूरा होगा जमीन अधिग्रहण का काम