उत्तर प्रदेश की इस मजार पर जूते और पत्थर मारते है राहगीर, ऐसे हुई शुरुआत

UP News : उत्तर प्रदेश के इटावा में चुगलखोर की मजार है जिसपर आज भी राहगीर जूते और पत्थर मारते हैं। राजा सुमेर सिंह ने सैन्य सूचनाओं की चुगलखोरी करने पर मृत्युदंड दिया था। मजार बनवा कर राहगीरों को जूते-पत्थर मारने का हुक्म था।
 

Saral Kisan : उत्तर प्रदेश की मजारों में आमतौर पर लोग चादरपोशी कर दुआएं मांगते हैं। लेकिन यहां एक ऐसी भी मजार है, जिस पर राहगीर जूते-पत्थर बरसाते हैं। कहा जाता है कि यह परंपरा 900 साल पुरानी है। सैन्य सूचनाओं की चुगलखोरी पर राजा सुमेर सिंह ने चुगलखोर को प्राणदंड दिया था। उन्हीं के आदेश पर राहगीर मजार पर जूते-पत्थर बरसाते थे। आज भी यह परंपरा कायम है। मजार शहर से चार किमी दूर दतावली गांव में है।

इतिहासकार कहते हैं कि राजा सुमेर सिंह के काल में राजा जयचंद का मुहम्मद गोरी से  1129 में भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में राजा सुमेर सिंह ने जयचंद का साथ दिया था और उनकी ओर से गौरी की सेना से लड़े थे। युद्ध के बीच उनके महल और सेना की गोपनीय जानकारी मुहम्मद गोरी तक पहुंचाई गई। इसके कारण सुमेर सिंह के 500 सैनिक मारे गये थे। बाद में राजा को पता चला कि उनकी सेना और हथियारों की जानकारी उनके महल से कुछ दूरी पर झोपड़ी में रहने वाले भोला सैय्यद नाम के एक फकीर के वेश में जासूस ने मुहम्मद गोरी तक पहुंचाई थी।

इस पर उन्होंने तत्काल सैनिकों को हुक्म देकर भोला सैय्यद को गिरफ्तार करवा लिया। उसको गिरफ्तार करने के बाद भरे दरबार में उसको चुगलखोरी के लिये मौत की सजा सुनायी गयी। सबक सिखाने के लिये एक खाली मैदान में उसको खड़ा करके जनता से पत्थर फिंकवाये। लोगों से उसको जूते मरवाये गये थे। ऐसा तब तक किया गया, जब तक उसकी जान नहीं चली गयी। इसके बाद राजा ने उसके गांव के बाहर ये मजार बनवायी थी।

इतिहास के अध्येता प्रो. शैलेंद्र शर्मा बताते हैं कि किसी पुरानी किताब में तो इसका जिक्र नहीं मिलता, लेकिन पुराने लोग यह जानकारी जरूर देते हैं। 1950 में इतिहासकार कृपानारायण पाठक द्वारा लिखित पुस्तक इटावा जनपद के हजार साल में इसका जिक्र है। इस किताब में चुगलखोर की मजार के वृतांत की पुष्टि होती है।

50 साल के कौशल कश्यप बताते हैं कि उन्होंने पुरखों से इस बाबत सुना है। मजार के पास ही चाट बेचने वाले कौशल ने बताया कि 25-30 साल से उन्होंने स्वयं ही आने जाने वालों को चुगलखोर की मजार पर पत्थर व जूते मारते देखा है। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से उनकी मुराद पूरी होती है। अब लोग कम आते हैं, कई मर्तबा मजार के जीर्णोद्धार के बाबत बातचीत चली लेकिन फिर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

65 साल के नगला भिखन के रहने वाले बेटालाल का कहना है कि चुगलखोर की मजार को अपने बचपन से ही देखते आ रहे हैं। यहां पहले लोग बहुत आते थे और यहां आकर अपनी मन्नतें मांगते थे और पत्थर मारते थे। लेकिन पुराने लोगों के साथ ही ये प्रथा अब धीरे धीरे कम होती जा रही है। अब कभी कभार लोग ऐसा करते दिखायी देते हैं।

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