तप रहा सूरज, इस बार 19% कम बारिश, 10 साल में ऐसा छठी बार

Monsoon Update Today : मानसून के पहले महीने में बारिश कम ही नहीं हो रही है, बल्कि गर्मी के महीने भी बढ़ रहे हैं। मौसम विभाग के मुताबिक जून खत्म होने में 5 दिन बचे हैं और अब तक देश में सामान्य से 19% कम बारिश हुई है। ऐसा लगातार तीसरे साल हो रहा है।
 

Monsoon Update Today : मानसून के पहले महीने में बारिश कम ही नहीं हो रही है, बल्कि गर्मी के महीने भी बढ़ रहे हैं। मौसम विभाग के मुताबिक जून खत्म होने में 5 दिन बचे हैं और अब तक देश में सामान्य से 19% कम बारिश हुई है। ऐसा लगातार तीसरे साल हो रहा है। 10 साल में छह बार जून में बारिश सामान्य से कम, एक बार सामान्य और तीन बार सामान्य से अधिक हुई है।

मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 2013 से जून में तापमान बढ़ा है। बारिश के दिन कम हुए हैं। सूखे के मामले बढ़े हैं। आंध्र, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, बंगाल, तमिलनाडु में ऐसे दिनों की संख्या बढ़ रही है। जबकि गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब में इसमें कमी आई है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम. राजीवन का कहना है कि तेज पश्चिमी हवाओं के कारण जून में मानसून 20 दिन बंगाल और दो हफ्ते गुजरात तट और महाराष्ट्र में अटका रहा।  

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, 1988 से 2018 के दौरान 62% जिलों में कम बारिश हुई। नया शोध, जो 6 महीने पहले ही बता सकता है मानसून का पैटर्न मध्य आर्कटिक में तेजी से पिघलती है बर्फ, मानसून में भीगता है पूर्वोत्तर राज्य मानसून के मौसम में भीगते हैं, जब आर्कटिक महासागर के मध्य क्षेत्र में मार्च से मई तक बर्फ तेजी से पिघलती है। अगर इन महीनों में आर्कटिक में बर्फबारी होती है, तो मध्य, दक्षिण और उत्तर-पूर्व में कम बारिश होती है। जब उत्तरी ध्रुव के बैरेंट्स कारा सागर में समुद्री बर्फ कम होने लगती है, तो मानसून की शुरुआत में देरी होती है, लेकिन उत्तर-पश्चिमी भारत में बारिश भी अधिक होती है। 

यह निष्कर्ष गोवा के राष्ट्रीय ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के अध्ययन में पाया गया। जल संकट भारत की आर्थिक सेहत बिगाड़ सकता है: मूडीज रेटिंग एजेंसी मूडीज के अनुसार, जल संकट देश की आर्थिक सेहत बिगाड़ सकता है।  इससे कृषि, उद्योग, कोयला, बिजली उत्पादन और इस्पात निर्माण जैसे जल-गहन क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। भारत में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 2031 तक 1486 घन मीटर से घटकर 1367 घन मीटर रहने की उम्मीद है। अगर यह 1000 घन मीटर रहता है तो इसे गंभीर जल संकट कहा जाएगा। 

यह शोध 6 महीने पहले मानसून के पैटर्न की भविष्यवाणी करने में मददगार हो सकता है। शोध के सह-लेखक अविनाश कुमार का कहना है कि आर्कटिक की बर्फ और मानसून के बीच संबंधों पर यह अपनी तरह का पहला बड़ा अध्ययन है। इसके लिए जून 1979 से सितंबर 2021 तक मार्च से मई के दौरान आर्कटिक समुद्री बर्फ और मानसून (जून से सितंबर) की बारिश के बीच संबंधों का आकलन सैटेलाइट इमेज और क्लाइमेट मॉडल सिमुलेशन का इस्तेमाल करके किया गया।