High Court's Decision on Alimony : अविवाहित बेटी पिता से मांग सकती है गुजारा भत्ता या नहीं, हाईकोर्ट का यह फैसला
Saral Kisan : हमारे देश में अविवाहित बेटियों की स्थिति बहुत ट्रिकी है। क्योंकि उसके पिताजी और भाई बाद में जिम्मेदारियों को लेने को तैयार नहीं होंगे। ऐसे में वह बहुत परेशान हो जाती हैं। सरकार की कई योजनाओं में भी, बालिग होने का मतलब आत्मनिर्भर होना है, इसलिए किसी भी पिताजी को उनकी बालिग बेटियों की सहायक राशि पर अधिकार नहीं है।
लेकिन सही में?
18 साल के ऊपर हर कोई बालिग हो जाता है, लेकिन 25 साल से पहले बहुत कम लोगों को नौकरी मिलती है और आत्मनिर्भर बनते हैं। ऐसी ही स्थिति एक महिला और उसकी बेटी के सामने आई, जिसके कारण उसने अदालत में शिकायत की। बांबे हाइकोर्ट ने इस मामले में फैसला दिया कि अविवाहित बेटियां, भले ही वे 18 साल की हों, अपने पिता से गुजारा खर्च पाने का हक रखती हैं।
बेटी की ओर से मां भी गुजारा खर्च का दावा कर सकती है—
याचिका की सुनवाई करते हुए बांबे हाईकोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे ने कहा कि अपनी बालिग बेटी की ओर से उसकी मां भी गुजारा खर्च का दावा कर सकती है। यह फैसला एक महिला की याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनाया है।
इस महिला ने पहले घरेलू कोर्ट में अपनी बेटी का खर्च मांगा था। लेकिन महिला की याचिका को फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था। महिला ने हाई कोर्ट में इसकी शिकायत की। याचिका में, महिला ने अपनी 19 साल की बेटी के लिए उसके पिता से गुजारा खर्च का भुगतान किया।
क्या मामला है?
इस महिला ने 1988 में शादी की थी और 1997 में अपने पति से अलग हो गई। वह अपने दो बेटे और एक बेटी से रहती है। जब तक बच्चे नाबालिग थे, पिता उस महिला को हर महीने पालन-पोषण के लिए पैसे देता रहा। जैसे ही बेटी की उम्र 18 साल पार हुई, पिता ने उसकी मां को घर छोड़ दिया।
बेटी के 18 साल के होते ही विवाह करना बंद कर दिया—
बेटी की मां ने हाईकोर्ट में अपील की। महिला ने अपनी शिकायत में कहा कि "भले ही उसकी बेटी बालिग हो गई है लेकिन अब भी वह अपनी उच्च शिक्षा के लिए आत्मनिर्भर नहीं हुई है।" याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके बेटे भी मदद करने के योग्य नहीं हैं। जबकि एक बेटा नौकरी खोज रहा है, तो दूसरा अपना एजुकेशन लोन चुका रहा है।「
धारा 125 (1) (बी) के अनुसार, फैमिली कोर्ट ने अर्जी खारिज की, जिसके अनुसार महिला को उसका पति हर महीने 25,000 रुपये का गुजारे भत्ता देता है। उसने अपनी बेटी को हर महीने 15,000 रुपये का अतिरिक्त गुजारा भत्ता देने की मांग की। फैमिली कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट ने अपने निर्णय में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 (1) (बी) का उल्लेख करते हुए कहा कि नाबालिग बच्चों को ही घरेलू खर्च मिल सकता है।
बालिग बच्चों को भी घरेलू खर्चों का अधिकार
बांबे हाईकोर्ट की जस्टिस डांगरे ने फैसला दिया कि सीआरपीसी के तहत बालिग बच्चों को भी गुजारा खर्च देना होगा अगर वे किसी शारीरिक या मानसिक अक्षमता के कारण खुद की देखभाल करने में असमर्थ हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट द्वारा पहले दिए गए निर्णयों का भी उल्लेख करते हुए पति को अपनी बालिग अविवाहित बेटी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
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