यहां शादी से पहले ही किया जाता है बच्चा पैदा , वजह जान रह जाएंगे हैरान

जहां कुछ जनजातियां खुद साथी चुनकर विवाह करती हैं तो वहीं कुछ जनजातियां शादी के बगैर ही साथ रहना पसंद करती हैं. ऐसी ही एक जनजाति है राजस्थान की गरासिया आदिवासी जनजाति. ये शादी से पहले ही अपने साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती हैं.
 

Ajab gajab: जहां कुछ जनजातियां खुद साथी चुनकर विवाह करती हैं तो वहीं कुछ जनजातियां शादी के बगैर ही साथ रहना पसंद करती हैं. ऐसी ही एक जनजाति है राजस्थान की गरासिया आदिवासी जनजाति. ये शादी से पहले ही अपने साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती हैं.

New Delhi: भारत देश को उसकी संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां हर राज्य में अलग अलग रंग देखने को मिलते हैं. देश में कई तरह की जनजातियां रहती हैं. हर किसी का रहन सहन एक दम अलग है. इनके रहने से लेकर विवाह तक के तरीके बिल्कुल अलग हैं.

जहां कुछ जनजातियां खुद साथी चुनकर विवाह करती हैं तो वहीं कुछ जनजातियां शादी के बगैर ही साथ रहना पसंद करती हैं. ऐसी ही एक जनजाति है राजस्थान की गरासिया आदिवासी जनजाति. ये शादी से पहले ही अपने साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती हैं

राजस्थान की गरासिया आदिवासी जनजाति के शादी का तरीका औरों से एक दम अलग है. ये शादी से पहले ही अपने पार्टनर के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं.

इन्हें अनुमति होती है कि ये शादी से पहले एक दूसरे के साथ रह सकते हैं. साथी को ढूंढने के लिए यहरां हर साल गौर मेला लगाया जाता है, जिसमें लड़कियां अपने पसंद के साथी के साथ भाग जाती हैं.

गरासिया आदिवासी जनजाति की महिलाएं मेले में अपने साथी का चुनाव करती हैं और फिर उसके साथ भागने के बाद लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगती हैं.

इसके बाद जब दोनों को बच्चा हो जाता है तब वह शादी के लिए आगे बढ़ती हैं. अगर उन्हें साथी के साथ रिश्ता अच्छा नहीं लग रहा है तो वो इसे तोड़ भी सकती हैं. इस जनजाति में महिलाओं को ऊंचा दर्जा दिया गया है, इसके चलते वो अपने फैसले ले सकती हैं.

बच्चा होने के बाद जब जोड़ा शादी के बारे में सोचता है तो लड़के के परिवार वाले लड़की के परिवार को एक राशि देते हैं, जिसके बाद दोनों की शादी होती है.

इस शादी का पूरा खर्च लड़के वाले उठाते हैं. यदि लिवइन में रहते समय लड़की को लड़का समझ नहीं आ रहा है तो वो उसी दौरान दूसरा लड़का भी देख सकती है.

गरासिया जनजाति का इतिहास सदियों पुराना है. लोग इन्हें प्रदेश के ही गोगुंदा की उत्पति मानते हैं. बताते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी से पराजित होने के बाद राजपूतों ने भील जनजातियों के पहाड़ी इलाकों के लिए उड़ान भरी थी.

इसके बाद गरासियाओं ने भील जनजातियों पर अधिकार जमा लिया और इसे आदिवासी समुदाय के रूप में जाना जाने लगा. गरासिया जनजातियों को ‘गिरे हुए राजपूत’ के नाम से भी जाना जाता है.

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