उत्तर प्रदेश में करोड़ों की सरकारी जमीन बेच डाली, अब नहीं छुड़ रहा कब्जा! हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
 

लखनऊ में एक मामला ऐसा भी है जिसमें प्रदेश के शिक्षा विभाग के द्वारा दी गई सरकारी जमीन को ही अब सरकार वापस नहीं ले पा रही. दरअसल, 50 साल पहले सरकार द्वारा स्कूल संचालन के दिए लिए दी गई जमीन को स्कूल समिति की मिली भगत से बिल्डर और भू माफिया ने कब्जा कर रखा है.

 

Saral Kisan, UP News: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे कठिन कदमों के बावजूद, जैसे माफियाओं और अपराधियों की अपराध से अर्जित संपत्ति पर बुलडोजर चलाना और अवैध कब्जों को हटाना, उसके साथ ही दूसरी ओर एक मामला है जहाँ प्रदेश के शिक्षा विभाग की द्वारा दी गई सरकारी ज़मीन को वापस लेने में सरकार कठिनाईयों का सामना कर रही है।

50 साल पहले, सरकार द्वारा स्कूल संचालन के लिए दी गई ज़मीन को स्कूल समिति को मिली भगत से भगत कर बिल्डरों और भू-माफिया ने अवैध कब्जा कर लिया। लखनऊ के कमिश्नर ने आर्बों रुपये की सरकारी ज़मीन को वापस लेने की सिफ़ारिश की, लेकिन यूपी के शिक्षा और राजस्व विभाग ने चार महीने बाद भी 50 साल पुरानी ज़मीन जो स्कूल समिति को दी गई थी, माफियाओं से कैसे वापस ले, यह प्रश्न है। और उसके साथ ही उस पर होने वाले अवैध कब्जों को कैसे हटाएं?

इसकी यथास्थिति यह है कि लखनऊ की श्री योगेश्वर ऋषिकुल बाल वेद विद्यापीठ को स्कूल संचालन के लिए दिए गए अर्बों रुपये की सरकारी ज़मीन का मामला है। 1972 में प्रदेश सरकार ने श्री योगेश्वर ऋषिकुल बालवेद विद्यापीठ जूनियर हाई स्कूल समिति को 22 बीघा 17 बिस्वा से अधिक ज़मीन स्कूल संचालन के लिए दी थी। ने

दावा किया कि उसके द्वारा दो स्कूल, श्री योगेश्वर ऋषिकुल इंटर कॉलेज और श्री योगेश्वर ऋषिकूल बालिका इंटर कॉलेज (अब स्वामी योगानंद बालिका इंटर कॉलेज) संचालित हो रहे थे।

ज़मीन को स्कूल के संचालन के लिए आवश्यक था, और इसलिए सरकार ने उसे यह शर्त लगाई कि उसे न तो बेचा जा सकता है, न ही किराये पर दिया जा सकता है, और न ही उसका उपयोग बदल सकता है। अर्थात, ज़मीन पर सिर्फ स्कूल का ही काम होगा। 1976 में उस ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया, उसके बाद।

हालांकि, 1994 में समिति ने लखनऊ के सिविल कोर्ट में एक वाद दायर किया कि ज़मीन अधिग्रहण के लिए किसानों को मुआवजा देने के लिए ₹7लाख की ज़मीन बेचने की अनुमति मांगी।

फिर समिति ने 2005 में शिक्षा विभाग से अनुमति मांगी कि वह ज़मीन बेच सके। लेकिन शिक्षा विभाग ने अनुमति नहीं दी। 2006 में जिलाधिकारी ने ज़मीन बेचने पर रोक लगा दी, लेकिन फिर भी समिति के सचिव ने भुगतान करके ज़मीन बेच दी।

आरोप है कि 2009 से 2011 के बीच समिति के सचिव ने अवैध तरीके से 11 बीघा से अधिक ज़मीन को बिल्डरों और भू-माफियाओं को बेच दिया। इसमें शामिल हैं 2600 वर्ग मीटर से अधिक की ज़मीन, जो स्थानीय व्यापारी को 34 लाख रुपये में बेची गई और 11 बीघा से अधिक की ज़मीन, जो बिल्डर को 4 करोड़ 83 लाख रुपये में बेची गई।

जब इस मामले की जानकारी सार्वजनिक हुई, तो 2018 में समिति के सचिव और अध्यक्ष के साथ खरीददार बिल्डरों और दुकानदारों पर एफआईआर दर्ज करवाया गया। नवम्बर 2022 में लखनऊ कमिश्नर ने जांच के बाद सरकारी ज़मीन वापस लेने और अवैध निर्माण को हटाने की सिफ़ारिश की।

बताया जाता है कि विद्यालय समिति को 22 बीघा 17 बिस्वा की ज़मीन मिली थी, लेकिन वर्तमान में बिल्डरों का कब्ज़ा लगभग 11 बीघा पर है। बाकी ज़मीन पर अवैध टैक्सी स्टैंड, स्थानीय दबंग और गुंडों के सहायता से कार पार्किंग और गोदाम बने हुए हैं।

ज़मीन पर हुए अवैध कब्ज़ों को हटाने की लागत भी कब्ज़ा करने वालों से वसूलने की सिफ़ारिश की गई है। हालांकि, चार महीने से राजस्व विभाग उस सिफ़ारिश पर विचार नहीं कर रहा है।

उसी बीच, हाईकोर्ट लखनऊ ने एक जनहित याचिका दायर की है जिसमें सरकारी ज़मीन को बेचने पर उत्तर प्रदेश सरकार, शिक्षा विभाग और लखनऊ विकास प्राधिकरण से जवाब मांगा गया है। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले में सुनवाई की तारीख तय की है, जिसकी बाद कार्रवाई हो सकेगी।

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