Goat Farming: बकरी पालन में बड़े काम की चीज है यह चारा, जानिए फायदे

Goat Farming: केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) के मथुरा के एक वैज्ञानिक ने बताया कि लोबिया, बाजरा, ज्वार, बरसीम, जई और जौ जैसी चारे की फसलें साल भर उगाई जा सकती हैं। ऐसा करने से बकरियों को कैमिकल से उगा दूषित चारा नहीं खिलाना पड़ेगा, जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर रहेगा।  
 

Goat Farming: गाय पालन में चारे की कमी सबसे बड़ी समस्या नहीं है। आज बकरे-बकरियों को पोषक चारा खिलाना बहुत महत्वपूर्ण है। और इससे भी बड़ी बात है कि ऐसा चारा खरीदने के लिए उपलब्ध नहीं है। अब बकरी के दूध और मीट का कारोबार करना हो तो बकरे-बकरियों को प्राकृतिक खेती से उगा हरा चारा खिलाना बेहतर होगा। यदि दूध-मीट से लाभ उठाना चाहते हैं तो ऐसा करना ही होगा। केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) मथुरा ने नेचुरल फार्मिंग को भी बकरी पालन के कोर्स में शामिल करने की सिफारिश की है।

सीआईआरजी के साइंटिस्ट का कहना है कि बकरी पालन में प्राकृतिक खेती से उगे हरे चारे का उपयोग करने से बहुत से लाभ मिलेंगे। अर्थात् हर तरीके से लाभ ही लाभ है। ये बकरे-बकरियों के स्वास्थ्य के लिहाज से भी बहुत लाभदायक है।

नेचुरल खेती से उगे हरे चारे के लाभ जानें

सीआईआरजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मोहम्मद आरिफ ने किसानों को बताया कि एक हेक्टेयर हरे चारे को प्राकृतिक खेती से लगभग सौ बकरियां खा लेती हैं। जैविक खेती से उगे हुए हरे चारे का सबसे बड़ा लाभ यह है कि खाने के बाद जांच में बकरी के दूध और उसके मीट में खराब तत्व नहीं पाए जाते हैं। क्योंकि आज हर देश जो मीट खरीदता है, उसे निर्यात करते समय मीट की जांच करता है। इस जांच में मीट के उस आर्डर को कैंसिल कर दिया जाता है जब कैमिकल से उगे चारे के कारण मीट में कुछ खराब पदार्थ पाए जाते हैं। दूध भी ऐसा ही है। आज ऑर्गनिक दूध की मांग है।

जब जीवा और बीजा अमृत से उगाय जाते हैं, तो प्राकृतिक खेती का चारा महंगा हो जाता है। उत्पादन भी अधिक है। ये बकरियों की हैल्थ को बेहतर बनाता है। इस पर अभी अतिरिक्त अध्ययन चल रहा है। बकरी पालन के साथ चारा बेचकर भी लाभ मिल सकता है।

जैविक खेती में जीवा-बीजामृत का उपयोग

डॉ. मोहम्मद आरिफ, एक वैज्ञानिक, ने बताया कि जब बकरी खुद से बागों, मैदानों और जंगलों में चरती है, तो उसका दूध 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक होता है। क्योंकि बकरी अपने आस-पास की घास और पेड़ों को खुद चुनकर खाती है। लेकिन जब हम फार्म या घर में पाली हुई बकरियों को बरसीम, चरी या दूसरा हरा चारा देते हैं, तो पेस्टी साइट रहता है।

यही कारण है कि हम संस्थान में बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने वाले किसानों को प्राकृतिक खेती से चारा उगाने के बारे में बता रहे हैं। हम भी अपने संस्थान के खेतों में हरा चारा उगा रहे हैं। इसके लिए बीजामृत और जीवामृत बनाया गया है। गुड़, बेसन और देशी गाय के गोबर-मूत्र में मिट्टी मिलाकर जीवामृत बनाया जाता है। यह सब मिलकर मिट्टी में मौजूद फ्रेंडली बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं। चारों पक्ष इससे लाभ उठाते हैं। बकरियों की मेंगनी का इस्तेमाल करने पर भी अध्ययन चल रहा है।

ये पढ़ें : उत्तर प्रदेश में बनेगी अब ये नई रेल लाइन 111 गावों से गुजरेगी, बनेगें 57 पुल और 15 अंडरपास