मानसून से पहले कपास की बजाई  में जुटे किसान, 95 प्रतिशत हुई बुवाई

MP News : मध्य प्रदेश के खरगोन क्षेत्र की मुख्य फसल कपास मानी जाती है, मध्य प्रदेश में ज्यादातर किसान मानसून से पहले मई महीने में कपास की बुवाई की जाती है। हर वर्ष की तरह इस बार भी क्षेत्र में कपास की बुवाई अधिक होने की उम्मीद है।

 

Saral Kisan, MP News : खरगोन में पानी की मात्रा पूर्ण रूप से होने के कारण तकरीबन 95%  कपास की बुवाई होने का अनुमान लगाया जा रहा है, अब तक मध्य प्रदेश के खरगोन में 5% बिजाई हो चुकी है, और क्षेत्र में बुवाई का काम तेजी से चल रहा है। खरगोन खरगोन कृषि अनुसंधान केंद्र मुताबिक  क्षेत्र में तकरीबन 3800 से 4000 हेक्टेयर में  इस साल कपास की बिजाई का अनुमान है. 

अक्षय तृतीया के बाद किसान अपने खेतों में सहूलियत के मुताबिक कपास की बिजाई कर रहे हैं, इन दिनों में काफी खेतों में  किसान और मजदूर कपास की बुवाई करते नजर आ रहे हैं।

तेज धूप में सुबह से कर रहे हैं खेती का काम

गर्मी का सीजन चलते हुए तापमान 40 डिग्री पर रहता है. सुबह 8:00 बजे से ही सूरज अपना प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर देता है, दोपहर होने तक तो घरों से निकलना भी हो जाता है मुश्किल सड़के आ रही सूनी सूनी नजर, कोई खास काम के लिए लोग घरों से निकल रहे हैं सड़कों पर, इसके चलते किसान भी सुबह से खेत में पहुंचकर  निपटा रहे अपने कृषि कार्य, मध्य प्रदेश के किसानों ने बताया कि वह लोग गर्मी को देखते हुए सुबह 5:00 बजे ही घर से खेतों के लिए निकल जाते हैं ताकि सुबह-सुबह तापमान कम रहने की वजह से काम करने में कोई परेशानी ना हो, सुबह के ठंडे मौसम में मजदूरों को भी परेशानी कम होती है, कृषि कार्य व्यवस्था होने के साथ-साथ ही स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता। किसानों ने बताया कि खेत का कोई जरूरी काम होने से पर दिन में भी करना पड़ता है

ड्रिप लाइन से करें कम पानी में सिंचाई

मानसून के आने से पहले गर्मी में लगाई गई कपास की फसल की सिंचाई के लिए किसान ड्रिप लाइन का प्रयोग कर रहे हैं, इस तकनीक से बरसात आने से पहले थोड़े से पानी में सिंचाई हो जाती है। कपास की बिजाई में लगे किसानों ने बताया मानसून के आने से पहले बोई हुई फसल  थोड़े समय पहले पक जाती है, जिस वजह से मानसून सक्रिय होने पर फसल में नुकसान नहीं होता

सिंचाई के लिए पानी की जरूरत को लेकर चिन्तामुक्त

क्षेत्र में किसानों को सिंचाई के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा रहती है यहां कुओं और ट्यूबवेल जैसे अन्य स्रोतों में पानी की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध है और इसके अलावा सटक तालाब का गेट खराब होने के कारण नेहरू में पानी चालू है। किसानों को इंदिरा सागर परियोजना की लहरों से भी फसल की सिंचाई के लिए पानी मिल जाता है। क्षेत्र में गुजर रही नहरे और तालाबों की वजह से जमीन का भी वाटर लेवल अच्छा बना हुआ है, कुओ का भी जल स्तर अच्छा बना हुआ है