मटर की इन 5 किस्मों की करें अगेती खेती, मिलेगा 3.5 लाख का मुनाफा
Saral Kisan : मटर की खेती बहुत ज्यादा उपयोगी और लाभदायक है। क्योंकि मटर को सूखे दानों और अन्य आवश्यक कंज्यूम किए जाने वाले उत्पादों में भी प्रयोग किया जाता है. मटर से हरी सब्जी भी बनाया जाता है। यह अपने अनगिनत आयुर्वेदिक गुणों के साथ-साथ हमारे बालों, त्वचा और स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। इसलिए बहुत से किसान मटर की खेती करना पसंद करते हैं। सितंबर से शुरुआती अक्टूबर तक मटर की अगेती बुआई होती है। मटर की अगेती बुआई इस समय ठीक है। लेकिन किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए उत्तम बीज और किस्म की जानकारी होना भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। किसानों को मटर की अच्छी पैदावार के लिए भी सही किस्मों का चयन करना चाहिए। जाने इन किस्मों के बारे में....
काशी का उदय: ये मटर की किस्म बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में खेती के लिए काफी ज्यादा उपयुक्त भी है। 2005 में काशी उदय को बनाया गया था। इसकी फली 9 से 10 सेंटीमीटर लंबी होती है। किसानों को प्रति एकड़ 42 क्विंटल मटर की पैदावार मिल सकती है। कटाई के लिए 60 दिनों का समय लगता है, और इस किस्म का बीज प्रति किलो 250 रुपए हो सकता है।
काशी अगेती: काशी अगेती मटर की किस्म बहुत कम दिनों में तैयार होती है। इस किस्म की फलियां गहरे हरे रंग की होती हैं और सीधी होती हैं। यह मटर किस्म 50 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म का उत्पादन प्रति एकड़ 38 से 40 क्विंटल हो सकता है।
काशी नंदिनी: 2005 में उत्पादित इस उत्कृष्ट किस्म का मटर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडू और केरल में खेती के लिए विकसित किया गया था। Kashi Nandhini मटर एक प्रसिद्ध ब्रांड है। इस किस्म का उत्पादन प्रति एकड़ 44 से 48 एकड़ होता है।
काशी से मुक्ति: इस किस्म का मटर बिहार, झारखंड और पंजाब राज्यों में व्यापक रूप से खेला जाता है। इसकी फलियां लंबी होती हैं और दाने साइज में बड़े होते हैं। इसकी मांग भी विदेशों में काफी ज्यादा होती है। यह किस्म 46 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन दे सकती है।
मटर 155: ये मटर की संकर किस्मों में सर्वश्रेष्ठ है। बुआई के 50 से 60 दिनों के बाद ही हरी फलियां काट सकते हैं। रोगों का प्रकोप इस किस्म में काफी कम होता है। इस किस्म पर फफूंद रोग और फली छेदक कीटों का प्रकोप कम होता है।
मटर उत्पादन कैसे करें
खरीफ सीजन में फसल कटने के बाद खेत को एक या दो बार हैरो से जुताना चाहिए। भूमि को समतल करना चाहिए और फिर उसे प्लेन करना चाहिए। इससे बुआई के दौरान नमी की कमी भी दूर होगी। इससे बीज अंकुरित होगा। मटर को अक्टूबर से नवंबर मध्य तक बुआई करना चाहिए। बीज को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में बोएं और बीज से 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी बनाए रखें। मटर की खेती में 35 से 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।
वायु
जब बात मटर की खेती की है, तो उचित जलवायु 10 से 18 डिग्री सेल्सियस होनी चाहिए। 10 से 18 डिग्री तापमान इस खेती के लिए अच्छे हैं। बीज अंकुरण के लिए, हालांकि, 20 से 22 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान आवश्यक है। 10 से 18 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर मटर का पौधा काफी विकसित होता है।
भूभाग
मटर की खेती के लिए आवश्यक भूमि: मटर एक फलीदार फसल है, इसलिए पर्याप्त नमी के साथ खेती योग्य भूमि में उगाया जा सकता है। इस खेती के लिए नमी युक्त अच्छी मटियार मिट्टी अच्छी है। लेकिन लगभग सभी मिट्टी इसके लिए अच्छी है। अच्छी सिंचाई होने पर हल्की बलुई या दोमट मिट्टी में भी मटर की पैदावार अच्छी होती है।
वर्षा
मटर की खेती में अच्छे अंकुरण के लिए अच्छी सिंचाई आवश्यक है। बुआई के बाद आम तौर पर एक या दो बार सिंचाई की जरूरत होती है। फूल आने से पहले और फल आने के बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। ज्यादा सिंचाई से फसल कम उपज और पौधों में पीलापन हो सकता है, इसलिए यह सुनिश्चित करें कि सिंचाई नियत और नियमित रूप से होती रहे।
कितनी आय होगी?
मटर की खेती से मिलने वाली कमाई पर कई कारक प्रभावित होते हैं। कृषि कौशल, मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु और फसल की देखरेख शामिल हैं। अगर फलियां पूरी तरह पकी हुई हैं, तो किसान का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 18 से 35 क्विंटल होता है। हरी सब्जी के लिए उपयोग की जाने वाली कच्ची फली की पैदावार प्रति हेक्टेयर 90-150 क्विंटल होती है। किसान 150 क्विंटल कच्ची फली को 30 रुपए प्रति किलोग्राम बेचने पर 4 लाख 50 हजार रुपये मिलेंगे। एक लाख रुपये की लागत भी कम कर दी जाएगी। यही कारण है कि एक हेक्टेयर खेत में किसान का शुद्ध मुनाफा 3लाख रुपये होगा।
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