उत्तर प्रदेश की 21 महिलाएं ने बनाया जैविक खाद से रोगमुक्त गन्ने का बीज, कृषि विभाग ने किया सम्मानित

किशोरपुर गांव की सुमन और उनके साथ जुड़ी 20 अन्य महिलाएं कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी प्रेरणा हैं। पिछले 4 वर्ष से, सुमन सैनी की पहल पर महिलाओं का एक समूह जैविक खाद से गन्ने का बीज बनाकर किसानों को स्वस्थ और रोगमुक्त गन्ने की पौध दे रहा है।
 

Saral Kisan : किशोरपुर गांव की सुमन और उनके साथ जुड़ी 20 अन्य महिलाएं कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी प्रेरणा हैं। पिछले 4 वर्ष से, सुमन सैनी की पहल पर महिलाओं का एक समूह जैविक खाद से गन्ने का बीज बनाकर किसानों को स्वस्थ और रोगमुक्त गन्ने की पौध दे रहा है।

इसके लिए शुरुआत में महिलाओं ने जैविक गन्ने से बनाई गई नर्सरी खुद बनाई थी. सफल होने पर, वे अब हर साल 2 लाख से ज्यादा पौध बनाकर शामली और मुजफ्फरनगर के किसानों को दे भी रही हैं। विशेष रूप से, ये महिलाएं विभिन्न गांवों में जाकर किसानों को जैविक खाद से उत्पादित पौधों का ज्ञान दे रही हैं। इन महिलाओं का सम्मान भी कृषि विभाग के कर्मचारियों ने किया भी है।

गन्ना विभाग के सुपरवाइजर से बीज तैयार करने की प्रशिक्षण से शुरू हुआ

वास्तव में, सुमन सैनी पिछले लगभग 7 साल से 10 बीघा जमीन पर खेती कर रही है। किंतु 4 साल पहले, गन्ना विभाग के सुपरवाइजर ने उन्हें जैविक सामग्री से गन्ने की खाद बनाने की सलाह दी। जिस पर सुमन एनआरएलम से जुड़ी और शिक्षित हुई। परीक्षण के लिए पहले अपने खेत में 14201 और 13235 गन्ना की किस्मों का बीज लगाया। जो परिणाम सराहनीय रहा। अपने साथ बीस औरतों को भी जोड़ा। अब प्रति वर्ष 2 लाख से ज्यादा पौध बनाए जाते हैं। पौध को शामली के अलावा भी किसानों को मिल रहा है। इस बार महिलाओं ने पांच लाख से अधिक पौध बनाने का लक्ष्य रखा है।

बड़चिप विधि से तैयार बीज

बड़ चिप विधि में पहले गन्ने की बड़ी यानी आंख बड़ चिप मशीन से निकाल दी जाती है। प्लास्टिक ट्रे से बने खानों में उसे धोकर रखते हैं। ट्रे के खानों में वर्मी कम्पोस्ट या कोकोपिट लगाया जाता है। अगर वर्मी कम्पोस्ट और कोकोपिट नहीं हैं, तो किसान सड़ी हुई पत्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। ट्रे में बड़ की बुवाई करने के बाद वक्त-वक्त पर फव्वारे से हल्की सिंचाई करें। सुमन कहते हैं कि नर्सरी पौध को ट्रे से सावधानी से निकालकर मुख्य खेत में निश्चित दूरी पर रोपण करें। गन्ने के बीच में किसान आसानी से दलहनी, तिलहनी, सब्जी और नगदी फसलें उगा सकते हैं।

रोगमुक्त फसल

कृषि वैज्ञानिक डा. संदीप चौधरी और कृषि उपनिदेशक का यह कहना है कि रसायनिक खादों से बनाए गए बीज न सिर्फ लोगों को बीमार भी करते हैं, बल्कि उनके शरीर पर भी बुरा असर भी होता है। यही कारण है कि सरकार जैविक खाद्य से बने बीज को बढ़ावा दे रही है।

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