काला मक्का खेती से किसानों की बढ़ेगी आय, समझ लें फार्मिंग करने का सरल तरीका

भारत में मक्के की खेती काफी सालों से की जा रही है, मक्के की खेती को वैसे जायद सीजन में होने वाली फसल है. जायद फसल की खेती करने पर किसान साल में तीन फसल ले सकता है. मक्के की खेती मात्र 90 दिन की होती है कम खर्च में काफी मुनाफे वाली फसल है.
 

Saral Kisan : भारत में मक्के की खेती काफी सालों से की जा रही है, मक्के की खेती को वैसे जायद सीजन में होने वाली फसल है. जायद फसल की खेती करने पर किसान साल में तीन फसल ले सकता है. मक्के की खेती मात्र 90 दिन की होती है कम खर्च में काफी मुनाफे वाली फसल है. मक्का को किसान के 2 तरह से बच सकता है दान निकालने के बाद चार टाल पर अपनी मक्की को चारे के लिए बेच सकता है, इसलिए मक्का का उत्पादन भी दूसरी फसलों से मुताबिक ज्यादा होता है. देश में कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों के लिए काले मक्के की एक किस्म की खोज की है,जिसकी खेती किसानों के लिए वरदान साबित है,  किसान मक्के की फसल को उगाना ज्यादा पसंद करते हैं. विज्ञान केंद्र का यह भी कहना है कि काला मक्का में प्रोटीन भरपूर मात्रा मे पाया जाता है जो कमजोरी से लड़ने में वरदान है होता है काले मक्के से दूर होगा पतलापन दिखोगे मोठे और तंदुरुस्त.

काले मक्के किसम से किसानों बहुत ज्यादा फायदा मिलता है. भारत में में पहली बार काले मक्के की वेरायटी की खोज मध्य प्रदेश के जिले छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र में काला मक्के पर रिसर्च किया गया है. इस मक्के की खास बात यह है कि इसमें भरपूर मात्रा में जिंक, कॉपर और आयरन है. 

काले मक्के में क्या है खास

भारत में मक्के की खेती काफी सालों से की जा रही है देश में उगाई जाने वाली देशी मक्का वेरायटी पर शोध कर कृषि वैज्ञानिकों ने मक्का की एक नई किस्म जवाहर मक्का 1014 को सोध कर तैयार किया है. काले मक्के की इस किस्म में आयरन भरपूर मात्रा मे पाया जाता है तथा कॉपर और जिंक की मात्रा शामिल है जो कमजोरी से लड़ने में वरदान साबित है. काले मक्के को  स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मन गया है यह एक स्वास्थ्यवर्धधक प्रोडक्ट है . मध्य प्रदेश के कृषि अनुसंधान केंद्र में विकसित मक्का की यह पहली किस्म है जो न्यूट्रीरिच या बायो फोर्टिफाइड है. वहीं आमतौर पर मक्का के दानों का रंग पीला होता है, लेकिन इस नई प्रजाति का रंग लाल, काला कत्थई है.

इस तरीके से करें खेती 

काले मक्के नई किस्म की ये खेती 3 महीने में पाक कर तैयार हो जाती है. अगर हम बात करें इसके  उत्पादन की तो 26 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो सकती हैं.बिजाइ करते समय 8 किलो बीज प्रति एकड़ के हिसाब से डाला जाता है. इस वेरायटी की  सिल्क सिर्फ 50 दिन में आ जाती है. यह किस्म तना छेदक बीमारी के प्रति सहनशील है. इसके अलावा वर्षा आधारित क्षेत्र खासकर पठारी क्षेत्रों के लिए यह बेहद उपयुक्त है. किसान अगर इस किस्म की खेती करना चाहते हैं तो इसकी खेती कतार में की जाती है. वहीं कतार से कतार की दूरी 60 से 75 सेमी होनी चाहिए.

मक्के फसल के मिलेंगे अच्छे दाम 

कोई नई प्रजाति की फसल बोने पर किसानों को अक्सर चिंता होती है की इसका बाजार भाव क्या होगा, क्योंकि किसान के मन मे ऐसे सवाल काफी पेदा होते है क्योंकि किसान बच्चों की तरह अपने फसल को पालता है अच्छे दाम और उपज के लिए जीतोड़ मेहनत करता है और उत्पादन प्रभावित तो नहीं होगा. ऐसे में स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी इस मक्के का बाजार भाव सामान्य मक्के की तुलना में ज्यादा होगा. सबसे खास बात यह है कि इसकी उपज में कोई फर्क नहीं आएगा. पीले मक्के की तरह ही इसकी पैदावार भी अधिक होगी.